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Janmashtami 2024: जयपुर। भगवान श्रीकृष्ण का वैसे तो मिट्टी के कण-कण से वास्ता है, लेकिन श्रीकृष्ण का राजस्थान के जैसलमेर से खास रिश्ता रहा है। कहानियां और किस्से इसका आज भी गवाह हैं, यहां का इतिहास मौजूद समय में भी प्रमाण है। उन्हीं प्रमाणों में से एक है थार के रेगिस्तान के बीच बसे जैसलमेर के त्रिकुट पहाड़ी (वर्तमान में त्रिकूटगढ़ या सोनार दुर्ग) पर बना एक प्राचीन कुआं। सोनार दुर्ग स्थित लक्ष्मीनाथ जी मंदिर के पास स्थित जैसलू कुआं 5000 से अधिक साल पुराना है।
इतिहासकार तने सिंह सोढ़ा के अनुसार, प्राचीन काल में मथुरा से द्वारिका जाने के लिए जैसलमेर से होकर रास्ता निकलता था। एक बार श्रीकृष्ण और अर्जुन इसी रास्ते से द्वारिका जा रहे थे। इस बीच अर्जुन को जोर की प्यास लगी और आस-पास कहीं पानी दिखाई नहीं दिया तो श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल करके एक कुआं खोदा जिसके पानी से अर्जुन की प्यास बुझाई। लेकिन पानी पीने के बाद श्रीकृष्ण से अर्जुन ने सवाल किया यहां कुआं तो आपने खोद दिया, लेकिन भविष्य में ये किस काम आएगा। तभी श्रीकृष्ण ने भविष्यवाणी की थी कि मेरे वंशज यहां आकर अपना राज्य बसाएंगे और शासन करेंगे।
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यह घटना करीब 5000 हजार साल पुरानी बताई जा रही है। इसी त्रिकूट पहाड़ी पर कृष्ण के 116 वंशज ‘महारावल जैसलदेव’ ने जैसलमेर की स्थापना की। इस घटना का उल्लेख इतिहासकारों ने ‘नैणसी री ख्यात’ पुस्तक में किया है, जो इस घटना को प्रमाणित करती है। यहां श्रीकृष्ण से लेकर अब तक वशंज का नाम लिखा है।
मेहता अजीत ने अपने ‘भाटीनामे’ में लिखा था कि एक शिलालेख पर जैसलमेर के बसने की भविष्यवाणी बहुत पहले ही हो गई थी। इस शिला लेख में लिखा गया था, ‘जैसल नाम का जदुपति, यदुवंश में एक थाय किणी काल के मध्य में, इण था रहसी आय’ इसका तात्पर्य है कि जैसल नाम का एक राजा यहां आकर अपनी राजधानी बनाएगा। हुआ भी ऐसा ही त्रिकूटगढ़ पर महारावल जैसल ने संवत 1212 में सोनार दुर्ग की नींव रखी और एक विशाल दुर्ग बनाया। संयोग ये भी रहा कि प्राचीन काल में दुर्गवासी जैसलू कुंए से अपनी प्यास बुझाते थे।
इतिहासकारों की लिखित वंश परंपरा के अनुसार जैसलमेर राजघराने का सीधा संबंध भगवान श्रीकृष्ण से रहा है। जैसलमेर के भाटी शासक श्रीकृष्ण के वंशज हैं। वर्तमान महारावल चैतन्यराज सिंह श्रीकृष्ण के 159वीं पीढ़ी के वंशज हैं, भगवान श्रीकृष्ण के बाद उनके कुछ वंशधर हिंदुकुश के उत्तर में सिंधु नदी के दक्षिण भाग और पंजाब में बस गए थे। वह स्थान ‘यदु की डांग’ के नाम से जाना जाता है। यदु की डांग से जबुलिसतान, गजनी, सम्बलपुर होते हुए सिंध के रेगिस्तान में आए और वहां से लंघा, जमाडा और मोहिल कौमो को निकालकर तनौट, देरावल, लोद्रवा और जैसलमेर को अपनी राजधानी स्थापित किया।
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भगवान श्रीकृष्ण के असली वंशज वर्तमान में जैसलमेर के भाटी शासक है। इसका प्रमाण है कि देवराज इंद्र ने श्रीकृष्ण को मेघाडम्बर छत्र व तख्त दिया था जो आज भी जैसलमेर के राजपरिवार के पास है। जैसलमेर में राजतिलक के वक्त महारावल उस पर विराजते हैं। श्रीकृष्ण से जुड़ी ये निशानियां आज भी जैसलमेर किले के म्युजियम में रखी हुई हैं। साथ ही साथ जैसलमेर रियासत कालीन राजकीय ध्वज में भी मेघाडंबर छत्र का चिन्ह बना हुआ है।
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