Khatu Shyam Birthday 2024 राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम मंदिर इन दिनों देश ही नहीं विदेश में भी अपनी अलग पहचान बना चुका है। हर दिन लोगों की आस्था का मुख्य केंद्र बनता जा रहा है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार खाटू श्याम जी को भगवान कृष्ण के कलयुगी अवतार भी बताया गया है। खाटू श्याम जी को कई नामों से जाना जाता है लेकिन सबसे ज्यादा उनको हारे का सहारा के नाम से जाना जाता है। इस नाम के प्रसिद्ध होने की असली कहानी बहुत कम लोगों का पता है और ऐसे में हम आज इस नाम के पीछे की कहानी बताने जा रहे हैं।
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तीन बाण धारी, शीश के दानी, कलयुगी अवतारी और हारे का सहारा जैसे कई नामों से जाना जाता है। खाटू श्याम जी को सबसे ज्यादा हारे का सहारा नाम से जाना जाता है।
खाटू श्याम जी के रूप में प्रसिद्ध भगवान असल में पांडव भीम के पोते अर्थात घटोत्कच के बेटे हैं। जिनका असली नाम बर्बरीक था और बचपन से वह बहुत ज्यादा शक्तिशाली वीर योद्धा थे।
महाभारत के युद्ध में लड़ने के लिए बर्बरीक ने अपनी माता से आज्ञा मांगी। कौरवों की सेना अधिक होने के कारण पांडव कमजोर थे और इस पर मां ने उन्हें आज्ञा देते हुए ये वचन लिया कि वह युद्ध में हार रहे पक्ष का साथ देंगे। तभी से खाटू श्याम हारे का सहारा कहलाने लगे और अब श्याम भक्त जो कभी जीवन में निराश होता है तो वह बाबा के दरबार में जाकर अपने आपको शक्तिशाली समझता है। बाबा के दर्शन करने के बाद उसकी जिंदगी में बड़ा बदलाव आता है और इसी वजह से कलयुग में उनको हारे का सहारा कहा जाता है।
भगवान श्री कृष्ण बर्बरीक की वीरता से परिचित थे और उनको इस बात का पता था कि वह अपनी मां के वचन को पूरा करेंगे। बर्बरीक जब देखेगा की कौरव युद्ध में निर्बल पड़ रहे है तो वह उनके पक्ष में युद्ध करेगा तो पांडवो की पराजय निश्चित है। इसके बाद श्री कृष्ण ने छल से बर्बरीक से वरदान मांगा की तुम अपने प्राण दे दो और इस बात को सुनकर बर्बरीक हैरान हो गया। लेकिन वचन देने के कारण उसने तलवार से अपना सर काटकर भगवान श्री कृष्ण के चरणों में रख दिया । इसके बाद श्री कृष्ण ने वरदान दिया की कलयुग में तुम्हारी पूजा मैरे नाम श्याम से होगी। जिस तरह आज इस धर्म युद्ध को तुमने अपने प्राण देकर सहारा दिया है, उसी प्रकार कलयुग में तुम अपने सभी भक्तो का सहारा बनोगे।
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बाबा श्याम का मुख्य लक्खी मेला 20 मार्च 2024 को आयोजित होगा। लक्खी मेला 12 मार्च से शुरू होकर 21 मार्च तक आयोजित होगा। हिंदू पंचाग के अनुसार 12 मार्च तृतीया से शुरू होकर 21 मार्च द्वादशी तक चलेगा।
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