Ramcharitmanas Chaupai Mantra: रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने चौपाईयों के रूप में कई मंत्रों की रचना की है। इन चौपाईयों के प्रयोग से असंभव कार्य को भी सहज ही संभव किया जा सकता है। अन्य तंत्र-मंत्र के प्रयोगों की तरह इनमें ज्यादा परिश्रम नहीं है और न ही किसी प्रकार का कोई खतरा होता है। इन्हें सिद्ध करना भी बहुत सरल है। यही वजह है कि बड़े-बड़े धर्माचार्य भी रामचरितमानस की इन चौपाईयों का प्रयोग करने की सलाह देते हैं।
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जीवन की बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान भी रामचरितमानस की चौपाईयों में बताया गया है। इसी प्रकार यदि भक्ति, ज्ञान और वैराग्य प्राप्त करना हो तो उसके लिए भी रामचरित मानस को सर्वोत्तम माना गया है। इसका कारण यही है कि इनका प्रयोग बहुत सरल है और गलती होने पर किसी प्रकार का कोई दोष भी नहीं लगता।
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किसी भी समस्या के समाधान के लिए सर्वप्रथम इन चौपाईयों को सिद्ध करना होगा। इसके लिए नवरात्रि तथा होली-दीवाली को विशेष शुभ माना गया है, अन्यथा मंगलवार एवं शनिवार की रात को भी इन प्रयोगों को किया जा सकता है।
रामचरितमानस की इन चौपाईयों को सिद्ध करने के लिए शुभ दिन पर, शुभ मुहूर्त में रुद्राक्ष या तुलसी की माला पर 108 बार चौपाई का जप कर लेना चाहिए।सर्वप्रथम गणपति और गुरु की वंदना कर अपने इष्टदेव का आशीर्वाद लें। तत्पश्चात् राम दरबार, मां गौरी सहित भगवान शिव एवं हनुमानजी की पूजा करें।
सभी देवताओं को पूजा करते समय पुष्प, माला, धूप, दीपक, सुगंध, नैवेद्य, आदि अर्पित करें। उनकी आरती करें तथा उनका आशीर्वाद लेकर आप जिस भी चौपाई को सिद्ध करना चाहते हैं, उस चौपाई का हवन कर लेना चहिए। हवन के लिए (1) चन्दन का बुरादा, (2) तिल, (3) शुद्ध घी, (4) चीनी, (5) अगर, (6) तगर, (7) कपूर, (8) शुद्ध केसर, (9) नागरमोथा, (10) पञ्चमेवा, (11) जौ और (12) चावल को मिलाकर सामग्री बना लेनी चाहिए।
इस तरह चौपाई मंत्र सिद्ध हो जाते हैं, अब प्रतिदिन सुबह के समय अभिष्ट चौपाई का रोजाना 108 बार पाठ करते रहें ताकि आपकी आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ती रहे और आपकी कार्य जल्द सिद्ध हो। अलग-अलग समस्याओं के लिए अलग-अलग चौपाईयां बताई गई हैं।
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अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।
जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।
भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।
पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।
कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा॥
तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥
प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।
भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।
नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम ।
लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥
जनकसुता जगजननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।
केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।
राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।
दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥
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