रामलला की पूजा करने वाले पुजारी की 31 साल की दर्द भरी दास्तां

 

अयोध्या में राम मंदिर बनने के बाद सभी राम भक्तों को बहुत ज्यादा खुशी है लेकिन इस मंदिर का सपना भगवान राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को पूरे रीतिरिवाज से होने के बाद पूरी हो जाएगी। लेकिन मंदिर के बनने से पहले 31 सालों से राम लाल की पूजा कर रहे पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास रामलला को सबसे ज्यादा खुशी हुई है। पुजारी ने अपने 31 साल के इस सफर की कहानी जब सबके सामने रखी तो हर किसी की आँखे नम हो गई। राम मंदिर का निर्माण हो चुका है और रामलला के प्रधान पुजारी सत्येंद्र दास को कैसे नियुक्ति किया गया था। 

हर दिन लगता था कि मंदिर जल्द बनेगा

मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास ने भारी सुरक्षा और प्रतिबंधों के बीच लंबे समय तक रामलला की नियमित रूप से पूजा करने का काम किया है। उन्हें हमेशा लगता था कि  ​एक दिन भव्य मंदिर ज़रूर बनेगा और उन्हें 1992 को विवादित स्थल के रिसीवर ने उन्हें पुजारी के तौर पर नियुक्त किया गया था। तब से लेकर आज तक वह नियमित रूप से रामलला की पूजा अर्चना करते रहे है।

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वेतन के लिए करना पड़ा संघर्ष

पुजारी का वेतन 100 रुपये महीने था, लेकिन इसके बाद वेतन में बढ़ोत्तरी का सिलसिला शुरू हुआ। साल 2018 तक 12 हजार मासिक मानदेय मिलता था और उनके घर का खर्च शिक्षक की नौकरी के वेतन से चला था।

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शिक्षक से पुजारी तक का सफर

आचार्य सत्येंद्र दास के पुजारी बनने की कहानी भी बड़ी मजेदार है। रामलला के पुजारी महंत लालदास थे और उनको हटाने की चर्चा चल रही थी। उस समय  रिसीवर को रिटायर्ड जज को रिपोर्ट करना होता था और रिसीवर का निधन हो गया।  भाजपा सांसद विनय कटियार और विश्व हिंदू परिषद के कुछ नेताओं के साथ उनके अच्छे रिश्ते होने के चलते यह जिम्मेदारी आसानी से मिल गई।  उनकी नियुक्ति हुई तो वह उस समय संस्कृत कॉलेज में अध्यापन का काम कर रहे थे।

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बाबरी विध्वंस का समय

आचार्य सत्येंद्र दास की नियुक्ति बाबरी मस्जिद विध्वंस कांड से पहले हो गई थी। उन्होंने बताया की जब यह सब हुआ वह सब कुछ अपनी आंखों से देख रहे थे। वह रामलला के पास ही रहकर उनकी सुरक्षा कर रहे थे और भीड़ ने जब विवादित ढांचे को तोड़ना शुरू किया तो रामलला की प्रतिमा को उठाकर दूसरी जगह चले गए।

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