Siddha Kunjika Stotram: ज्योतिष शास्त्र में शुक्रवार को मां भगवती का प्रिय वार बताया गया है। इस दिन उनके विभिन्न स्वरुपों की पूजा-आराधना कर मां से मनचाहा आशीर्वाद लिया जा सकता है। जानिए मां के ऐसे ही कुछ उपायों और प्रभावशाली मंत्रों के बारे में जो उपयोग करते ही तुरंत आपका भाग्य बदलने की ताकत रखते हैं।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक बहुत ही प्रभावशाली मंत्र है। यह रुद्रयामल तंत्र में दिया हुआ है परन्तु कुछ लोग इसे दुर्गा सप्तशती का ही संक्षिप्त रुप भी मानते हैं। इसमें बीजमंत्रों के द्वारा मां का आह्वान कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है। इसका प्रयोग किसी योग्य विद्वान गुरु या आचार्य की देखरेख में करना चाहिए। यदि कभी ऐसा कोई संकट आ जाए, जिसका निदान न दिखाई दे और आपकी सामर्थ्य से बाहर की बात हो तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के जरिए आप उसे बहुत आसानी से कर सकते हैं।
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इस प्रयोग को गुरु से आज्ञा लेकर ही करना चाहिए। स्नान-ध्यान आदि से निवृत्त होकर सर्वप्रथम शुभ मुहूर्त में गणपति की पूजा करें। अब अपने गुरु, माता-पिता एवं इष्ट की पूजा कर उनसे आशीर्वाद लें। भगवान शिव तथा शिव परिवार के अन्य सदस्यों की पूजा करें। अंत में मां भगवती की पूजा करें, उन्हें धूप, दीपक, फल, नैवेद्य, कपूर, पुष्प, माला, पान, सुपारी आदि अर्पित करें। उन्हें प्रणाम कर उनसे अनुष्ठान को सफलतापूर्वक पूर्ण करने का आशीर्वाद मांगे और अपना पाठ आरंभ करें।
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॥सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्॥
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥१॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥२॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥३॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥४॥
॥अथ मन्त्रः॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।”
॥इति मन्त्रः॥
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि॥२॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥३॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥४॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥५॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥६॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥७॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥८॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
॥ॐ तत्सत्॥
इस स्तोत्र का प्रतिदिन कम से कम 11 बार और अधिकतम 108 बार पाठ करना चाहिए। इस विशेष अनुष्ठान को करते समय कुछ सावधानियां भी ध्यान रखनी चाहिए। ऐसा नहीं करने पर लाभ के स्थान पर हानि भी हो सकती है। जानिए इन सावधानियों के बारे में
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