18 Rupye ki Cycle: 10वीं पास कर लें तो तेरे लिए नई साइकिल लाकर दूंगा…जब हम छोटे थे तो हमने अपने पापा से यह लाइन बहुत सुनी है। जी हां 90 के दशक के बालकों के लिए यह बात सुनना कॉमन ही थी। लेकिन आज समय पहले से बहुत अधिक बदल चुका है। अधिकांश बच्चे अपने पेरेंट्स से साइकिल नहीं बल्कि सीधे मोटरसाइकिल और कार की मांग करते है। हम उस समय को पीछे छोड़ चुके है, जब 10वीं पास करने के बाद गाड़ी घर में आती थी।
आधुनिक दौर में बच्चे साइकिल चलाना भी पसंद नहीं करते है। आजकल के अधिकांश बच्चे मोटरसाइकिल से कम तो किसी चीज को मंजूर ही नहीं करते है। साईकिल की मांग को कम होते देख इन्हें बनाने वाली कंपनियों ने कई तरह के प्रयोग किये है, जिसका नतीजा है कि आज बाजार में Sports Cycle और अन्य Technology से लैस साइकिल्स आ चुकी है। लोग शरीर को स्वस्थ रखने के लिए इनकी खरीददारी करते है, लेकिन कार्यकलापों के लिए काफी कम।
भागदौड़ भरी आज की जिंदगी में हर कोई अपने गंतव्य तक शीघ्र पहुंचना चाहता है। यही वजह है कि समय के साथ-साथ साईकिल का महत्त्व कम हुआ है। लेकिन साइकिल्स बनाने वाली कंपनियों ने इनमें भी गियर सिस्टम और अन्य टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर इन्हें आधुनिक स्वरुप दिया हैं,जिसके बाद लोग इन्हें पसंद भी कर रहे है। इसके बाबजूद साईकिल को वो महत्व अभी भी नहीं मिल पा रहा है, जो 80-90 के दशक के लोगों द्वारा दिया जाता था।
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महंगाई के दौर में साइकिल्स भी काफी महँगी आने लगी है। ऐसे में हर किसी के लिए भी इन्हें खरीदने से पहले सोचना होता है। आज के समय कम से कम 3 हजार रुपये से साईकिल की कीमत शुरू होती है। लेकिन Social Media पर वायरल एक बिल के मुताबिक सन 1934 में यानी आजादी से पहले एक साईकिल को महज 18 रुपये में खरीदा जा सकता था। वायरल बिल कलकत्ता की एक साइकिल बेचने वाली फर्म ‘कुमुद साइकिल वर्क्स’ का है।
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