Semiconductor Industry in India : आजकल हर छोटी-बड़ी इलेक्ट्रॉनिक्स डिवाइस के अंदर एक चिप लगी रहती है जिससे सारा काम फटाफट हो जाता है। दिनों सिलिकॉन से बनने वाली यह चिप्स पूरी दुनिया चला रही है। कहने का मतलब है कि जो देश के चिप्स बनाएगा वह अर्थव्यवस्था में सबसे आगे रहेगा। फिलहाल इस मामले में चीन का दबदबा है। सिलिकॉन (Semiconductor Industry in India) से बनी इस बेहद छोटी चिप की अहमियत का अहसास तब होता है, जब दुनिया भर में गाड़ियों का प्रोडक्शन थम जाता है, मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट महंगे हो जाते हैं, डेटा सेंटर डगमगाने लगते हैं, घरेलू अप्लायंस के दाम आसमान छूने लगते हैं, नए एटीएम लगने बंद हो जाते हैं और अस्पतालों में ज़िंदगी बचाने वाली टेस्टिंग मशीनों का आयात रुक जाता है।
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कोविड काल में जब इन सेमीकंडक्टर्स चिप्स (Semiconductor Industry in India) की सप्लाई धीमी हो गई थी तो दुनिया भर के लगभग 169 उद्योगों में हड़कंप मच गया था। दिग्गज कंपनियों के अरबों डॉलरों का नुकसान उठाना पड़ा था। चीन, अमेरिका और ताइवान जैसे माइक्रोचिप्स के सबसे बड़े निर्यातक देशों की कंपनियों को भी प्रोडक्शन रोकना पड़ा था। रुस और यूक्रेन की जंग ने इस संकट को और गहरा कर दिया था, क्योंकि रूस सेमीकंडक्टर माइक्रोचिप्स बनाने में इस्तेमाल होने वाली धातु पैलेडियम का सबसे बड़े सप्लायरों में शुमार है, जबकि यूक्रेन नियोन गैस के सबसे बड़े सप्लायरों में से एक है। सेमीकंडक्टर को ‘न्यू ऑयल’ कहा जा रहा है। भारत डिजिटलाइजेशन के हाई वे पर दौड़ रहा है लेकिन इसके लिए ज़रूरी ‘ऑयल’ बाहर से मंगाया जाता है।
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भारत में तेज़ डिजिटलाइज़ेशन का दौर है। लिहाजा माइक्रोचिप्स (Semiconductor Industry in India) की मांग भी तूफ़ानी रफ्तार से बढ़ रही है। हमारे मिस्टर प्राइम मिनिस्टर ने सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री के निवेशकों को आमंत्रित करते हुए कहा, ” भारत में 2026 तक 80 अरब डॉलर के सेमीकंडक्टर की खपत होने लगेगी और 2030 तक ये आंकड़ा 110 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। ”भारत की विडंबना ये है कि दुनिया की लगभग सभी नामी-गिरामी चिप कंपनियों के यहां डिज़ाइन और आरएंडडी सेंटर हैं। लेकिन चिप बनाने वाले फैब्रिकेशन प्लांट या फैब यूनिट (Semiconductor Industries in India) नहीं हैं। भारत के इंजीनियर इंटेल, टीएसएमसी और माइक्रोन जैसी दिग्गज चिप कंपनियों के लिए चिप डिज़ाइन करते हैं।
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ऐसे में अगर हमें सेमीकंडक्टर चिप्स (Semiconductor Industries in India) का सूरमा बनना है तो सिलिकॉन चिप्स बनाने की सारी संभावनाएं भारत में ही विकसित करनी होगी। सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग के लिए अरबों डॉलर के निवेश के भारी-भरकम निवेश, प्राकृतिक संसाधन और बेहद कुशल मैनपावर की जरूरत है। भारत इन तीनों मोर्चों पर कमजोर दिख रहा है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या भारत इन तीनों चुनौतियों से निपटते हुए खुद को एक सेमीकंडक्टर ताकत के तौर पर खड़ा कर पाएगा? खैर यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा की इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री में भारत अपना नया मकाम किस तरह से और कब हासिल करता है। लेकिन जिस दिन भारत चिप इंडस्ट्री में आत्मनिर्भर हो गया तो फिर चीन की छुट्टी कर देगा। क्योंकि जो प्रतिभा भारत के पास है वह और किसी मुल्क के पास नहीं है। नासा इस बात का गवाह है। सोचिए जो मोबाइल, टीवी और लैपटॉप आप यूज कर रहे हैं अगर वह सब भारत में ही यही की बनी हुई मेक इन इंडिया सिलिकॉन चिप से बनने लग जाए तो देश की इकोनॉमी किस लेवल पर पहुंच जाएगी। सोचों सोचों…..
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