Categories: शिक्षा

रिश्तो को सहेजने, संभालने और सिलने वाली क्यों उधड़न में फंस जाती है? पढ़िए उपन्यास उधड़न

पुस्तक- उधड़न
लेखक-टीना शर्मा ‘माधवी’
पुस्तक समीक्षा-  नीलिमा टिक्कू

पितृसत्तात्मक दंभ और परम्परागत विकृत रूढ़ियों के मकड़जाल  में जकड़ी बेटियों की मार्मिक कथा है 'उधड़न'।
   युवा लेखिका पत्रकार टीना शर्मा का यह उपन्यास समाज में व्याप्त कुप्रथाएं और उनसे उपजी बेटियों की दुखद स्थितियों का मार्मिक चित्रण करता है। लेखिका ने दर्शाया है कि राजस्थान के गाँवों में आज भी 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' नारे से इतर बेटों को शिक्षित करना ही प्राथमिकता है। बाल विवाह छोटी उम्र में बेटियों का गौना बाल विधवा के उल्टे फेरों की प्रथा और तथाकथित मुक्ति! बेटियों को छोटी सी उम्र में कितने भीषण मानसिक संताप से गुजरना पड़ता है।
 

  दो युवतियों की मार्मिक व्यथा कथा के साथ विस्तार पाता उपन्यास जहां पुरूष सत्तात्मक  कठोर सामंतवादी रूप के दर्शन कराता है। वहीं बेटियों की मन स्थितियों का मनोवैज्ञानिक चित्रण भी सूक्ष्मता से करता है ।
 

 मन विद्रोह करना चाहता है पर घर में पुरूषों का निर्णय ही सर्वोपरि है । मां की स्थिति देखकर बेटी भी मजबूर है। पूरी कहानी जानने के लिए पाठकों को उपन्यास पढ़ना होगा।उपन्यास  में महिलाओं का सकारात्मक रूप दर्शाना लेखिका के मन के संवेदनशील उद्गार हैं। जहां दादी-पोती का प्रेम उनका एक-दूसरे के मन की बात को बिन कहे समझ जाना सास-बहू का मन में एक दूसरे के लिए प्यार आदि औरत ही औरत की दुश्मन होती है। इस मिथक को तोड़ता है।
   

 कसी हुई भाषा-प्रवाह में कथा कहन प्रशंसनीय है। साथ ही मन को उद्वेलित करते मार्मिक प्रसंग उल्लेखनीय हैं। लोकगीतों के साथ लोक प्रथाएँ तथा आंचलिक भाषा का प्रयोग सुंदर है। लेखिका ने पहले ही काकी के माध्यम से स्पष्ट कर दिया है कि वह पढ़े लिखे परिवार से आई है। इसलिए खड़ी बोली का प्रयोग कर सभ्य छवि सामने लाना चाहती है। हालाँकि उसे गाँव की भाषा से भी परहेज़ नहीं है। उपन्यास में प्रत्येक अध्याय के मार्मिक पंक्तियों में दिए गये शीर्षक मन को छू जाते हैं। 
 

  लेखिका ने उपन्यास में लिखा है कि गाँव में अभी शहर की बयार नहीं आई है। यह कटु सत्य है कि जिन ग्रामीण क्षेत्रों में जागृति नहीं आई है। वहाँ शिक्षा का अभाव है और इस तरह की दमघोटूं प्रथाएँ महिलाओं का जीवन दूभर किए हुए हैं।
   

 युवा लेखिका टीना शर्मा बधाई की पात्र हैं कि इस उपन्यास के माध्यम से उन्होंने ग्रामीण समाज में व्याप्त कुप्रथाओं को उजागर करने के साथ ही उनसे प्रभावित महिलाओं विशेष रुप से बेटियो की मार्मिक स्थितियों का सजीव चित्रण किया है ।
मुझे पूरा विश्वास है कि यह उपन्यास पाठकों के अंतर्मन को छूता हुआ साहित्य जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाएगा। 

नीलिमा टिक्कू
लेखक व साहित्यकार

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