Guru Ravidas Jayanti 2024
जयपुर। Guru Ravidas Jayanti Guru Ravidas Jayanti : गुरू रविदास भारत प्रमुख संतों में एक हैं पंजाब में रविदास, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में भक्त रैदास के नाम से जाना जाता है। गुजरात और महाराष्ट्र में उन्हें ‘रोहिदास’ और बंगाल में ‘रुइदास’ कहा जाता है। पुरानी पांडुलिपियों में उनको रायादास, रेदास, रेमदास और रौदास के नाम से भी संबोधित किया गया हे। भक्त रविदास का जन्म माघ मास की पूर्णिमा, रविवार को हुआ था। इसी वजह से उनका नाम रविदास रखा गया। इसबार Guru Ravidas Jayanti 24 फरवरी 2024 को मनाई जा रही है।
संत और कवि रविदास का जन्म (Sant Ravidas Birthday) माघ पूर्णिमा को 1376 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। उनकी माता का नाम कर्मा देवी (कलसा) तथा पिता का नाम संतोख दास (रग्घु) था। संत रविदास के दादा का नाम कालूराम तथा दादी का नाम लखपती था। भक्त रैदास की पत्नी का नाम लोनाजी और पुत्र का नाम विजय दास था। संत रविदास चर्मकार कुल थे जिस वजह से उनका जूते बनाने का काम था। वो अपना काम बड़ी खुशी, पूरी लगन और परिश्रम के साथ करते थे।
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संत रविदास का जन्म (Guru Ravidas Jayanti) ऐसे समय में हुआ था जब उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में मुगलों का शासन था। उस समय चारों तरफ अत्याचार, गरीबी, भ्रष्टाचार व अशिक्षा थी। उस समय मुस्लिम मुगल शासकों द्वारा प्रयास किया जाता था कि अधिक से से अधिक हिन्दुओं को मुसलमान बनाया जाए। उस समय संत रैदास की ख्याति लगातार बढ़ रही थी जिस वजह से उनके लाखों भक्त थे। उनके भक्त हर जाति के थे। यह देखकर एक परिद्ध मुस्लिम ‘सदना पीर’ उनको मुस्लिम बनाने आया था। उसने सोचा की अगर संत रविदास मुस्लिम बन जाते हैं तो उनके लाखों भक्त भी मुसलमान बन जाएंगे। यह सोचकर भक्त रैदास पर हर प्रकार से लोभ, लालच तथा दबाव बनाया गया था लेकिन संत रविदास तो संत थे उनको हिन्दू या मुस्लिम से नहीं बल्कि मानवता से मतलब था। इसी वजह से मुगलों की किसी भी कोशिश उन्हें मुस्लिम नहीं बना सकी।
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संत रविदास (Sant Ravidas) बहुत ही दयालु होने के साथ ही दानवीर भी थे। उन्होंने दोहों व पदों (Sant Ravidas Ke Dohe) के जरिए समाज में जातिगत भेदभाव खत्म कर सामाजिक एकता पर बल देने के साथ ही मानवतावादी मूल्यों की नींव रखी। रविदासजी ने सीधे तौर पर लिखा था कि ‘रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच, नर कूं नीच कर डारि है, ओछे करम की नीच’ इसका मतलब ये है कि कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने कर्म से नीच होता है। जो व्यक्ति गलत काम करता है वही नीच होता है। कोई भी व्यक्ति जन्म के अनुसार नीच नहीं होता। संत रैदास ने अपनी कविताओं के लिए जनसाधारण की ब्रजभाषा का प्रयोग किया था। उन्होंने इसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और रेख्ता यानी उर्दू-फारसी के शब्दों का भी मिश्रण किया था। आपको बता दें कि संत रविदास जी लगभग 40 पद सिख पंथ के पवित्र ग्रंथ ‘गुरुग्रंथ साहब’ में भी शामिल किए गए हैं।
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