जयपुर। कार्यालयों में कामकाज करने वालों को अनिवार्य रूप से साप्ताह में एक अवकाश दिए जाने का नियम है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी की इस दुनिया में एक ऐसी जगह है जहां इंसानों की तरह ही जानवरों को भी साप्ताहिक अवकाश दिया जाता है. यह अनोखी परंपरा झारखंड में लातेहर के 20 से ज्यादा गांवों में है. यह परंपरा आज से नहीं बल्कि पिछले 100 साल से भी ज्यादा पुरानी है. यहां बैल और अन्य पालतू मवेशियों को रविवार का अवकाश दिया जाता है ताकि वो आराम करते हुए अपनी थकान दूर कर सकें.
पशुओं दी जाती है एक दिन की छुट्टी
झारखंड के लातेहार के मानवों और पालतू पशुओं के बीच अपनेपन का संबंध जन्म जन्मांतर से है. ये लोग पशुओं की सुख सुविधा का ख्याल बहुत खास तरीके से रखते हैं. गौरतलब है कि पशुओं की मेहनत और सहयोग के कारण संसार में लोगों की भूख मिटती है. कड़ी मेहनत करने वाले इन पशुओं को आराम देने के लिए भी लोगों ने लातेहार के कुछ गांवों में एक नियम बना रखा है. इसके तहत यहां हफ्ते में एक दिन पशुओं को छुट्टी दी जाती है.
पूर्वजों के बनाए गए हैं नियम
यहां ग्रामीणों का मानना है कि उनके पूर्वजों ने जो नियम बनाए हैं वो काफी तार्किक हैं, क्योंकि जिस प्रकार मनुष्य को आराम की जरूरत होती है, उसी प्रकार जानवरों को भी आराम की जरूरत है. जानवर अपनी मेहनत के बल पर मनुष्य के जीवन यापन में सहयोग करते हैं. ऐसे में मनुष्यों का भी कर्तव्य है कि वह जानवरों के हित-अहित का ख्याल रखें.
100 साल पुरानी परंपरा का निर्वहन
ग्रामीणों के मुताबिक 10 दशक पहले जुताई के वक्त ही एक बैल की मौत हो गई थी. मंथन करने पे ये निष्कर्ष निकाला गया कि जरूरत से ज्यादा थकवाट और काम के बोझ को बैल झेल नहीं पाया, लिहाजा पंचायत में सामूहिक रूप से ये फैसला लिया गया था कि एक दिन जानवरों और मवेशियों से काम नहीं लिया जाएगा. तब से ये परंपरा चली आ रही है. मवेशियों के अवकाश के दिन किसान या ग्रामीण जिनके खेत होते हैं वो खुद ही जुताई करते हैं.
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