Durood kya hai: मुसलमान दुआ से पहले दरूद शरीफ क्यों पढ़ते हैं, ये है कारण!

Durood kya hai: रमजान का पाकीजा महीना चल रहा है। आसमान से अल्लाह तआला रहमतों की बारिश कर रहे हैं। आज रमजान का दूसरा जुम्मा है। आपने अक्सर सुना होगा कि मुसलमान दुआ से पहले नबी पर दुरूदे पाक का नजराना जरूर पेश करते हैं। कई बार तकरीरों में बयानों में आपने सुना होगा कि शुरुआत में कहते है कि सब लोग एक बार दुरूद शरीफ पढ़ें। तो आखिर ये दुरूद ए पाक क्या होता है जिसे इतना महत्व दिया जाता है। खासकर जुम्मे के दिन तो दुरूद शरीफ की कसरत से विर्द आपको गुनाहों से मुक्ति दिला सकती है। आज हम आपको Durood kya hai इस बारे में जानकारी देंगे। ताकि मुसलमानों के साथ ही गैर मुस्लिम भाई भी इस्लाम के इस अरबी उर्दू में लिखे हुए इल्म से फायदा उठा सकें।

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दुरूद शरीफ क्या होता है? (Durood kya hai)

अरबी में सलवात या अस-सलातु अलन-नबी तथा उर्दू में दुरूद शरीफ का मतलब है कि पैगंबर के अनुयायियों यानी उम्मत द्वारा नबी के लिए अल्लाह से दुआ करना। मसलन दुरूद शरीफ में मुसलमान प्यारे आका हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए अल्लाह से रहमत की दुआ करते हैं। इसका मतलब (Durood kya hai) है कि मोमिन अपने रसूल के लिए रहमत औऱ सलामती की दुआ कर रहा है।

दरूद शरीफ क्यों पढ़ते हैं?

जब भी मुसलमान के आगे नबी ए पाक मुहम्मद साहब का जिक्र होता है, या उनका नामे मुबारक आता है तो उसको दुरूद शरीफ पढ़ना जरूरी है। ऐसा करने से अल्लाह की रहमत उस पर नाजिल होती है। किसी भी दुआ को मांगने से पहले दुरूद शरीफ पढ़ लेने से दुआ की हिफाजत हो जाती है। मतलब वो दुआ फिर कुबूल होके ही रहती है। उसे दुरूद ए पाक की प्रोटेक्शन मिल जाती है। यही वजह है कि मुसलमान दुआ मांगने या किसी भी वजीफे को करने से पहले और बाद में दुरूद शरीफ जरूर पढ़ते हैं।

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जुम्मे के दिन दुरूद पढ़ने के फायदे

दुरूद पढ़ना मतलब आप अपने नबी के लिए दुआ करते हैं। दरूद शरीफ पढ़ने के बहुत फायदे हैं। लेकिन खास जुम्मे के दिन ये दुरूद शरीफ अगर आप शाम चार बजे की नमाजे अस्र के बाद पढ़ें तो बेहतर होगा। सबसे छोटा दुरूद शरीफ है कि नबी ए पाक का नाम लिया जाए। यानी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही सबसे छोटा दुरूदे पाक है। दुरूद शरीफ की फजीलत हदीस में बयान की गई है। बंदे का बुरा समय खत्म हो जाता है। गुनाह नेकियों में बदल दिये जाते हैं। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जियारत नसीब होती है। अल्लाह हम सबको कसरत से दुरूदे पाक पढ़ने की तौफीक नसीब अता फरमाएँ।

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