Indian Elephants Burial Ritual: आमतौर पर हाथियों को सामाजिक प्राणी समझा जाता है। माना जाता है कि वे भी इंसान की तरह इमोशनल होते हैं और अपने साथियों के बारे में जानने एवं सोचने-समझने की क्षमता रखते हैं। हाल ही भारत के एक गांव में घटी एक घटना ने इस बात को सही सिद्ध भी किया है।
वैज्ञानिकों के एशियाई हाथी अपने बच्चों तथा साथियों के शवों को जमीन में दफनाते हैं। इसके लिए वे एक खास प्रोसेस भी फॉलो करते हैं और एक विशेष तरह से ही मृत साथियों को दफनाने का काम करते हैं। इंडियन फॉरेस्ट सर्विस के अधिकारी परवीन कासवान और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च से जुड़े रिसर्चर आकाशदीप रॉय ने 16 महीनों तक हाथियों के व्यवहार पर काम किया है। इसी दौरान उनके सामने यह अद्भुत घटना घटी।
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उन्होंने अपनी रिसर्च में पश्चिम बंगाल के टी एस्टेट (चाय के बागानों) के बारे में लिखा। यहां पर उन्हें मृत हाथियों की कब्रें भी मिली। उन्होंने बताया कि हाथियों का झुंड मृत हाथियों के शरीर को धकेल या अपनी सूंड से घसीट कर आसपास मौजूद किसी गड्डे तक ले जाते हैं। कई बार तो इस काम के लिए हाथियों के झुंड ने 48 घंटों तक का सफर भी तय किया है।
वे अपने आसपास मौजूद किसी गहरे गड्डे को ढूंढ कर उसमें मृत हाथी को इस तरह लिटाते हैं कि उसका मुंह ऊपर की ओर रहे। इसके बाद उस पर मिट्टी गिरा कर उसे दफना दिया जाता है। आमतौर पर मृत हाथी को इस तरह दफनाया जाता है कि उसका सिर पूरी तरह मिट्टी में दब जाए और दूसरे जानवर उसे खोद कर निकाल न सकें।
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स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार मृत हाथी को दफनाने के बाद झुंड के साथी जोर से चिंघाड़ते और गुर्राते भी हैं जो संभवतया अपने दुख को प्रकट करने और मृतक हाथी को श्रद्धांजलि देने का एक तरीका हो सकता है। सबसे आश्चर्यजनक तथ्य तो यह है कि हाथियों का झुंड अक्सर उस रास्ते पर जाने से बचता है जहां पर किसी मृत हाथी को दफनाया गया हो। शायद यह उस स्थान से जुड़ी बुरी याद अथवा अशुभ घटना के कारण होता हो।
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ऐसा नहीं है कि यह परंपरा केवल एशियाई हाथियों में ही है वरन वैज्ञानिकों ने अफ्रीकन हाथियों को भी इस प्रथा का पालन करते देखा है। वे अक्सर अपने मृत साथी को पेड़ पौधों की टहनियां और पत्ते भी अर्पित करते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार यह रिवाज काफी हद तक इंसानों जैसा ही है जहां पर मृतक शरीर का अंतिम क्रियाकर्म करने के बाद मृतात्मा को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।
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