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प्यार हमें किस मोड़ पर ले आया? क्यों कलकत्ता हाई कोर्ट लिव इन रिलेशनशिप मामला सुर्खियों में है?

जहां एक देश की अर्थव्यवस्था भी विश्वास पर एक ही टिकी होती है। वही आज रिश्तो पर से विश्वास उठता जा रहा है। इसी का जीता जागता उदाहरण है। कोलकाता हाईकोर्ट का एक फैसला, जो इन दिनों सुर्खियां बटोर रहा है। क्योंकि लड़के ने लिव-इन में रहने से पहले लड़की से अपने विवाहित होने का तथ्य छुपाया नहीं था। इसलिए यह धोखाधड़ी और रेप का मामला नहीं है।
 

ऐसे में क्या हो आगे की राह?
कहीं ना कहीं समाज में तेजी से आ रहे बदलाव की शिकार अगर कोई हो रही है तो वह है, स्त्री।
स्त्री शब्द आते ही कहानियों के पन्ने पलटे जाने लगते हैं। दृश्य बदलने लगते हैं। आंखों के आगे एक अलग ही चित्र मंडराने लगता है। ऐसा आज अधिकांश लोगों के साथ हो रहा है और इसके पीछे की मुख्य वजह से तो आप सभी परिचित ही होंगे। सोशल मीडिया पर जिस प्रकार से महिला को उपभोग की वस्तु समझा जा रहा है। वह उसके स्वयं के लिए कितनी घातक सिद्ध हो रही है? यह स्वयं स्त्री को भी नहीं पता।

पूरा बाजार पटा पड़ा है, महिलाओं के उत्पाद से। लेकिन फिर भी एकाधिकार है पुरुषों का ऐसा क्यों?

ऐसे में अगर कोई स्त्री किसी कारणवश अपने अस्तित्व की तलाश करने निकलती है। तब उसका सामना होता है पर पुरुषों से इन्हीं पर पुरुषों में कुछ इतने शातिर होते हैं, जो पहले लोक लुभावने वादे करते हैं। लड़कियों और महिलाओं को अपने सांचे में ढालते हैं ।कभी-कभी तो शादीशुदा होने के बाद भी उनसे संबंध बनाते हैं। शादी के वादे भी करते हैं। फिर एक ऐसा मोड आता है। जब उनका पेट भर जाता है और वे उस महिला को यूज एंड थ्रो की तरह डस्टबिन में फेंक देते हैं।
ऐसे में क्या करें वह लड़की या महिला?

हाल ही में कोलकाता हाईकोर्ट में शादी का वादा कर लड़की के साथ किया गये रेप को गुनाह नहीं माना है। यह सहमति से बनाया गया रिश्ता है।
हां. संबंध तो सहमति से बने थे। पर वादे भी तो सहमति से बने थे? जिन वादो पर पूरी अर्थव्यवस्था टिकी होती है। अगर वह विश्वास खत्म हो जाए तो देश की अर्थव्यवस्था का क्या होगा?

ऐसा पुरुष जो एक साथ 2-2 महिलाओं को चला रहा है। क्यों नहीं अदालत ने उसे दोषी करार दिया? और ऐसे पुरुषों की महिलाएं जिन्हें इनकी भनक होती है फिर भी वे मौन साधना धारण किए उसे स्वीकार कर लेती हैं क्या उनका स्वाभिमान इसे धिक्कार का नहीं? शायद उसकी भी कोई मजबूरी होगी, वरना कौन स्त्री ऐसी होगी जो अपने पति को दूसरी औरत के साथ बर्दाश्त कर सके? सच तो यह है कि समाज के बहुत से यक्ष प्रश्न अब गंभीरता से सिर उठा रहे हैं और इन सब में छली जा रही है लड़की या स्त्री।

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