Kargil War Heroes : 26 जुलाई को भारत में करगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) मनाया जाता है। इस मौके पर देश के लिए अपना बलिदान देने वाले वीर सेनिक सपूतों के शौर्य को याद किया जाता है। कारगिल युद्ध (Kargil War) में अपने प्राणों की आहुति देने वाले सैनिकों को सम्मानित करने और जंग में जीत के उपलक्ष्य में विजय दिवस (Vijay Diwas) के तौर पर मनाया जाता है। देश में यह ऑपरेशन विजय (Operation Vijay) की सफलता के प्रतीक के रूप में माना जाता है। भारत और पाकिस्तान के बीच करगिल वार जुलाई 1999 तक चला था जिसमें भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय चलाकर द्रास क्षेत्र में पाकिस्तानी हमलावरों द्वारा कब्जा किए गए क्षेत्रों को फिर से प्राप्त कर लिया था।
हालांकि, भारत और पाकिस्तान के बीच हुए इस युद्ध में भारतीय सेना के वीर जवानों को अपने प्राणों की आहुति भी देनी पड़ी जिसके चलते 527 से ज्यादा जवान शहीद होने के साथ ही 1300 से ज्यादा सेनिक जख्मी हुए। हालांकि, इनमें से 10 सेनिक और अधिकारी ऐसे थे जिन्हों अभूतपूर्व शौर्य दिखाया और पाकिस्तान से हमारी जमीन वापस लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन सेनिकों ने ऐसी तबाही मचाई कि आज भी इनका नाम जुबान पर आते ही पाकिस्तान की रूह कांप उठती है। ऐसे में आइए जानते भारत इन वीर रणबांकुरों के बारे में…
कैप्टन विक्रम बत्रा का नाम करगिल युद्ध के उन जवानों में शामिल है जिन्होंने पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे। कैप्टन बत्रा का जन्म 1974 में हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था और वो जून 1996 में मानेकशां बटालियन में आईएमए (IMA) में भर्ती हुए थे। प्रशिक्षण के बाद उनकी बटालियन 13 जेएके आरआईएफ को उत्तर प्रदेश जाने का आदेश मिला लेकिन 5 जून को बटालियन के आदेश बदल गए और उन्हें द्रास, जम्मू और कश्मीर स्थानांतरित कर दिया गया। वहां पर युद्ध में इस वीर जवान ने पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए लेकिन स्वयं शहीद होगए। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
करगिल युद्ध के नायकों में लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे का नाम बड़े गर्व से लिया जाता है। उनका जन्म 25 जून 1975 को उत्तरप्रदेश के सीतापुर में हुआ था। पांडे 1/11 गोरखा राइफल्स के जवान थे। उनकी टीम को दुश्मन सैनिकों को वापस खदेड़ने का जिम्मा दिया गया जो उन्होंने बखूबी करके दिखाया लेकिन स्वयं शहीद हो गए। मरणोपरांत मनोज कुमार पांडे को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
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नायब सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव घातक प्लाटून का भाग थे जिन्हें टाइगर हिल पर करीब 16500 फीट ऊंची चोटी पर स्थित 3 बंकरों पर कब्जा करने का काम जिम्मा दिया गया जिसके तहत उन्होंने 12 जून को टोलोलिंग टॉप पर कब्जा कर लिया। यादव का जन्म यूपी के बुलंदशहर में हुआ था। यादव को देश के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
करगिल युद्ध के दौरान राजपुताना राइफल्स रेजीमेंट के जवान हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया ने अदम्य साहस दिखाया था। उनका जन्म 1960 में मध्य प्रदेश के भिंड में हुआ था। वो ऑपरेशन विजय का हिस्सा थे। उनकी टुकड़ी को टोलोलिंग पहाड़ी पर द्रास सेक्टर में बनी चौकी को आजाद कराने की जिम्मेदारी दी गई जिसको उन्होंने हासिल करके दिखाया, हालांकि वो स्वयं शहीद हो गए। मरणोपरांत उन्हें वीरचक्र से सम्मानित किया गया।
ये भी करगिल युद्ध का हिस्सा थे जिन्होंने पाकिस्तानियों को खदेड़ने में प्रमुख भूमिका निभाई थी, हालांकि स्वयं शहीद हो गए। दिनेश सिंह भदौरिया का जन्म भी मध्य प्रदेश के भिंड में हुआ था। मरणोपरांत उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
कारगिल युद्ध में बिहार रेजीमेंट प्रथम बटालियन के मेजर एम. सरावनन और उनकी टुकड़ी में शामिल नायक गणेश प्रसाद यादव, सिपाही प्रमोद कुमार समेत कई और जवानों को जुब्बार पहाड़ी अपने कब्जे में करने की जिम्मेदारी दी गई थी। इन जवानों ने जुब्बार पहाड़ी पर विजय प्राप्त कर बिहार रेजीमेंट की वीरता का ध्वज लहराया।
18 ग्रेनेडियर्स के जवान राजेश सिंह का जन्म उत्तराखंड के नैनीताल में 1970 में हुआ था। मेजर राजेश सिंह को टोलोलिंग पहाड़ी पर कब्जा करने का जिम्मा दिया गया। उन्होंने अपने मिशन के दौरान कई दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया था, हालांकि वो शहीद हो गए। मरणोपरांत उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
मध्य प्रदेश के भिंड में जन्मे लांस नायक करन सिंह ने भी करगिल युद्ध में प्रमुख भूमिका निभाई थी। वो इंडियन आर्मी की राजपूत रेजीमेंट से थे। वो युद्ध में दुश्मनों को खदेड़ते हुए शहीद हो गए थे। मरणोपरांत उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
राइफलमैन संजय कुमार को करगिल युद्ध में मुशकोह घाटी में फ्लैट टॉप ऑफ प्वाइंट 4875 पर कब्जा करने के लिए स्वेच्छा से नियुक्त किया गया था। मिशन के दौरान दुश्मन ने उन पर ऑटोमेटिक गन से फायरिंग शुरू कर दी थी। हालांकि, उन्होंने अदम्य साहस दिखाते हुए 3 घुसपैठियों को मार दिया। उन्होंने अपने साथियों को आगे बढ़ाते हुए फ्लैट टॉप क्षेत्र पर आक्रमण किया। 1976 में हिमाचल प्रदेश में जन्मे संजय कुमार को परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
ये भी उन जवानों में शामिल थे जिन्होंने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे। मेजर विवेक गुप्ता ने टोलोलिंग टॉप पर दुश्मन को खदेड़ने में मुख्य भूमिका निभाई थी। कई गोलियां खाने के बावजूद मेजर विवेक अपने मिशन पर आगे बढ़ते रहे। जख्मी होने के बावजूद उन्होंने दुश्मन देश के 3 सैनिकों को मार गिराया और टोलोलिंग टॉप पर कब्जा कर लिया। मरणोपरांत उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
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