G K Vasan
जयपुर। Kaveri River Dispute: हाल ही में TMC नेता GK Vasan ने कहा है एक स्टेटमेंट जारी करते हुए केंद्र सरकार को कहा है कि कर्नाटक सरकार द्वारा कावेरी वाटर मैनेजमेंट अथाॅरिटी के तहत तमिलनाडु को दिए जाने वाले पानी को तुरंत जारी करवाया जाए। उन्होंने कहा है कि तमिलनाडु सरकार इस पानी हकदार है। हालांकि, आपको बता दें कि भारत में कावेरी नदी जल विवाद एक ऐसा मुद्दा है जो 141 साल से चला आ रहा है। कावेरी जल बंटवारे का मुद्दा एक बार फिर तूल पकड़ रहा है। तमिलनाडु और कर्नाटक के लोग लगभग पिछले 141 सालों से इस मुद्दे को लेकर आपस में झगड़ते आ रहे हैं। अब यह मामला निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया, लेकिन अब तक यह विवाद सुलझ नहीं सका है। इस वजह से बहुत से लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि आखर 1 नदी 2 राज्यों के बीच 100 साल से भी लंबे समय तक विवाद का कारण कैसे बन सकता है। तो आइए जानते हैं कावेरी जल विवाद जुड़ी पूरी कहानी…
कावेरी जल विवाद (Kaveri River Dispute) 141 साल से भी ज्यादा पुराना है जो सबसे पहले 1881 में शुरू हुआ था। इस दौरान कर्नाटक (उस समय मैसूर के नाम था) ने नदी पर बांध बनाने की मांग की थी। परंतु तमिलनाडु ने इसका विरोध किया। यह विवाद लगभग 40 सालों तक चला और फिर ब्रिटिश सरकार ने इसें अपने हाथ में लिया। इसके बाद 1924 में ब्रिटिश सरकार ने कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच समझौता कराया जिसके अनुसार तमिलनाडु का 556 हजार मिलियन क्यूबिक फीट और कर्नाटक का 177 हजार मिलियन क्यूबिक फीट पानी पर अधिकार दिया गया। यह नदी कर्नाटक के कोडागू जिले से निकलकर तमिलनाडु से होती हुई बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है। हालांकि, इसका कुछ हिस्सा केरल और पुडुचेरी में पड़ता है।
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हालांकि, पुडुचेरी और केरल भी कावेरी जल विवाद में कूद पड़े जिसके बाद 1972 में एक कमेटी गठित की गई जिसने 1976 में इन चारों राज्यों के बीच एक समझौता कराया। इस समझौते के बाद भी नदी जल को लेकर विवाद चलता रहा था। फिर 1986 में तमिलनाडु ने अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम के तहत एक ट्रिब्यूनल की मांग की। कर्नाटक का मानना है कि ब्रिटिश सरकार के दौरान लिया गया फैसला न्यायपूर्ण नहीं था। जबकि तमिलनाडु पुराने समझौते को सही मानता है।
यह मामला (Kaveri River Dispute) कई साल पहले ही सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था। 22 सितंबर को शीर्ष अदालत ने कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच चल रहे विवाद में हस्तक्षेप करने से मना दिया। इसको लेकर कहा कि सीडब्ल्यूआरसी और कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण के पास मामले पर निर्णय लेने के लिए विशेषज्ञ हैं। इन विशेषज्ञ निकायों ने पहले कर्नाटक को 13 से 27 सितंबर तक तमिलनाडु को प्रतिदिन 5,000 क्यूसेक पानी छोड़ने के लिए कहा था। तमिलनाडु ने कर्नाटक से 10 हजार क्यूसेक पानी और छोड़ने की मांग की परंतु कर्नाटक ने मना कर दिया। कर्नाटक सरकार का कहना था कि इस साल अपर्याप्त मानसूनी बारिश के कारण स्थिति काफी ज्यादा खराब हो गई है। कर्नाटक के अधिकारियों का कहना था कि दक्षिण-पश्चिम मानसून की विफलता के कारण, कावेरी बेसिन के 4 जलाशयों में अपर्याप्त भंडारण है और राज्य को पीने के पानी की जरूरतों को पूरा करने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है और राज्य में सिंचाई के लिए भी पानी नहीं। इस मामले की जड़ ये है कि इन दोनों राज्यों में पानी की कमी की समस्या है। चेन्नई के कुछ हिस्सों सहित तमिलनाडु के कई जिलों में पीने के पानी की काफी कमी रहती है।
इस मामले को कर्नाटक सरकार सुप्रीम कोर्ट लेकर गई परंतु वहां पर राज्य सरकार को झटका लगा। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया। इसके बाद कर्नाटक के किसान और संगठन तमिलनाडु को पानी दिए जाने के खिलाफ हो गए और बंद का आह्वान कर दिया। कावेरी जल नियमन समिति ने इसके बाद विचार-विमर्श करने के बाद कर्नाटक को 3000 क्यूसेक पानी बिलीगुंडुलु में छोड़ने की सिफारिश की।
कर्नाटक में हरंगी और हेमावती बांधों का निर्माण हरंगी और हेमावती नदियों पर किया गया है। ये कावेरी नदी की सहायक नदियां हैं। कृष्णा राजा सागर बांध का निर्माण कर्नाटक में मुख्य कावेरी नदी पर इन दो बांधों के डाउनस्ट्रीम में किया गया है। कर्नाटक में काबिनी जलाशय कावेरी नदी की सहायक नदी काबिनी पर बनाया गया है, जो कृष्णा सागर जलाशय में मिलती है। मेट्टूर बांध का निर्माण तमिलनाडु में कावेरी की मुख्य धारा पर किया गया है। केंद्रीय जल आयोग ने कावेरी के साथ काबिनी और मेट्टूर बांध के संगम के बीच मुख्य कावेरी नदी पर कोलेगल और बिलीगुंडुलु नाम से दो जी एंड डी स्थल स्थापित किए हैं। बिलीगुंडुलु जी एंड डी साइट मेट्टूर बांध से लगभग 60 किमी नीचे है जहां कावेरी नदी कर्नाटक और तमिलनाडु के साथ सीमा बनाती है।
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केंद्र सरकार ने अंतरराज्यीय कावेरी जल और नदी बेसिन के संबंध में तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और पुडुचेरी राज्यों के बीच जल विवाद का निपटारा करने के लिए 2 जून, 1990 को कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया। इसके बाद कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण ने 25 जून, 1991 को एक अंतरिम आदेश पारित कर कर्नाटक राज्य को कर्नाटक में अपने जलाशय से पानी छोड़ने का निर्देश दिया। इस आदेश पर विचार करने के बाद, भारत के राष्ट्रपति ने 27 जुलाई, 1991 को भारत के संविधान के अनुच्छेद 143 के खंड (1) के तहत, निम्नलिखित पर विचार करने और रिपोर्ट करने के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय को भेजा। उच्चतम न्यायालय ने 22 नवंबर, 1991 को उपरोक्त प्रश्नों पर अन्य बातों के साथ-साथ यह राय दी किय
इस ट्रिब्यूनल के दिनांक 25 जून, 1991 के आदेश में अंतर-राज्य जल विवाद अधिनियम, 1956 की धारा 5(2) के अर्थ के भीतर रिपोर्ट और पुरस्कार शामिल हैं और इसलिए, उक्त आदेश को प्रभावी करने के लिए, इसे इस अधिनियम की धारा 6 के तहत केंद्र सरकार द्वारा आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित किया जाना जरूरी है। इसके चलते दिनांक 10 दिसंबर, 1991 को सीडब्ल्यूडीटी के 25 जून, 1991 के अंतरिम आदेश को प्रभावी बनाने और इस विवाद के विभिन्न पक्षों द्वारा इसे बाध्यकारी बनाने और लागू करने के लिए राजपत्र में अधिसूचित किया गया। आईएसआरडब्ल्यूडी अधिनियम, 1956 की धारा 6 के तहत भारत के और उनके द्वारा इसे प्रभावी बनाने की आवश्यकता है।
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