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क्या है समलैंगिक कानून, जानिए संवैधानिक अधिकारों का आधार, इन 5 प्वॉइंट में समझें

जयपुर। समलैंगिक विवाह जिस पर सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच ठनी हुई है। सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए अदालत में दाखिल 15 याचिकाओं की सुनवाई चल रही थी। जिसमें अलग-अलग मांग रखी गई थी। आगामी 18 अप्रैल को जिसकी सुनवाई 5 सदस्यों वाली जज कमेटी को सौंपी गई है। क्या होगी आगे की राह? यह  पूरे समाज और सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी हुई है।

संवैधानिकता, समानता समलैंगिकता
भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को मूल अधिकार दिए गए हैं ।जिसमें आर्टिकल 21 जीवन का अधिकार सबसे महत्वपूर्ण अधिकारों की श्रेणी में है‌। इसी श्रेणी में एक और शामिल किया गया है। जो इसके सब सेक्शन में आता है वह है निजता का अधिकार। इसी निजता के अधिकार को अपना हथियार बनाते हुए समलैंगिकों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है ।जिसकी सुनवाई अब 18 अप्रैल को होने वाली है।

क्या है मांग?
समलैंगिकता जिसे अब अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया है‌। नवतेज सिंह जोहार के एक केस में आईपीसी की धारा 377 से शुरू हुआ यह केस 2018 में चर्चा का विषय था। जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने होमोसेक्सुअलिटी को अपराध की श्रेणी से हटा दिया। अब इसी आधार पर समलैंगिक अपना अधिकार मांगने सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। उनका कहना है कि जीवन का अधिकार के साथ-साथ निजता का अधिकार भी उनका मूल अधिकार है ।इसी के आधार पर स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 में वे समलैंगिकता को कानूनी मान्यता दिलाते हुए अपने विवाह को वैधानिक कानूनी जामा पहनाना चाहते हैं। एक अन्य केस का हवाला देते हुए जिसमें राइट टू प्राइवेसी, के एस पुत्तास्वामी वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया के आधार पर भी वह निजता को प्राथमिकता के आधार पर रखते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं।

सुप्रीम कोर्ट का क्या कहना है? 
2018 के नवतेज सिंह जौहर केस में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकों के पक्ष में निर्णय देते हुए होमोसेक्सुअलिटी को अपराध की श्रेणी से हटा दिया। यह एक ऐतिहासिक फैसला था। अब सुप्रीम कोर्ट के सामने निजता का अधिकार एक युक्तियुक्त प्रश्न लेकर खड़ा हुआ है। इसी आधार पर आर्टिकल 145( 3) के आधार पर 5 सदस्यता वाली संवैधानिक पीठ बैठाने का फैसला लिया गया है। रोचक बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट इस प्रसारण को सोशल मीडिया पर लाइव करने वाली है। सुप्रीम कोर्ट चाहती है कि इसे एक संवेदनशील मामला समझा जाए और क्योंकि यह समाज से जुड़ा हुआ है। इसलिए समाज के सभी वर्गों का इसमें प्रतिनिधित्व हो, विचार हो।

केंद्र सरकार की राय क्या है?
समाज से जुड़े संवेदनशील समलैंगिक विषय पर केंद्र सरकार इसके पक्ष में नजर नहीं आती। सरकार ने इसे सेमिनल इंर्पोटेंस देते हुए भविष्य के आधार पर सोच विचार कर निर्णय लेने की सलाह दी है। केंद्र सरकार के सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा है कि हम इसके खिलाफ हैं। यह हमारी संस्कृति के खिलाफ है। समलैंगिकता पर आगे चलकर बहुत से प्रश्न खड़े होने वाले हैं इन प्रश्नों का पहले समाधान होना चाहिए। उसके बाद ही हम इस पर मुहर लगाएंगे। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को समाज का गंभीर मुद्दा मान रखा है। केंद्र सरकार ने तो यहां तक कहा है। कि 2018 के केस का ही परिणाम है कि आज यह नौबत आई है । समलैंगिकों ने अब इसे कानूनी जामा पहनाने की वकालत शुरु कर दी। सरकार का तर्क है कि इससे समाज संस्कृति और सभ्यता को ठेस पहुंचेगी। 

आने वाली पीढ़ियों को हम क्या जवाब देंगे
आश्चर्य यह भी है कि इन याचिकाओं में पर्सनल लॉ जैसे कानून पर कोई मांग नहीं उठाई गई है। प्रथम दृष्टया यह मामला सामान्य नजर आ सकता है किंतु क्या यह इतना आसान होगा? यह देखने के लिए तो हमारे पास संजय की नजर होनी चाहिए।  क्या प्रभाव पड़ेगा आगे जाकर इसका समाज पर यह देखने वाली बात होगी। जब सोशल मीडिया का नकारात्मक प्रभाव आज के युवाओं पर देखने को मिल रहा है।

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