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राज्यपाल मौका मिलते ही गिरा सकते हैं सरकार, लेकिन इसने खाया थप्पड़

जयपुर। महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने राज्यपाल की भूमिका पर अहम टिप्पणी की है. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि राज्यपाल को किसी भी क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहिए जो कि सरकार के पतन का कारण बने. 

भगत सिंह कोश्यारी की भूमिका उठाया सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की भूमिका पर भी सवाल उठाया है. कोर्ट ने कहा कि यह दुखद तमाशा जैसा है. सीजेआई ने सुनवाई के दौरान कहा कि राज्यपाल ने शिवसेना के आंतरिक विवाद को कैसे सरकार के खिलाफ अविश्वास मान लिया? राज्यपाल का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ये उनकी संवैधानिक जिम्मेदारी थी. 

अब बात करें भारत के राज्यों के उन राज्यपालों की जिनकी वजह से आया पहले भी सियासी भूचाल आ चुका है तो वो इस प्रकार हैं—

हरियाणा
1980 में जनता पार्टी में टूट के बाद इंदिरा गांधी फिर सत्ता में वापसी की. केंद्र में सरकार बनने के बाद कई राज्यों में राज्यपाल बदले गए. इस दौरान हरियाणा, आंध्र प्रदेश समेत कई राज्यों में गैर-कांग्रेसी दल की सरकार थी. कांग्रेस उन राज्यों में सरकार बदलने के लिए मिशन की शुरुआत की. पहला नंबर हरियाणा का लगा. साल था 1982 और राज्यपाल बनाए गए गणपत राव देवजी तापसे. हरियाणा के मुख्यमंत्री थे चौधरी देवीलाल. कांग्रेस के भजनलाल ने उनकी पार्टी के कई विधायकों को मना लिया. इसके बाद वो विधायकों की परेड कराने राजभवन पहुंचे. कहा जाता है कि देवीलाल के साथ यहीं पर खेल हो गया. उनके समर्थन के अधिकांश विधायक राजभवन के पिछले दरवाजे से निकल गए. यह देखकर देवीलाल गवर्नर के चैंबर में गए और गुस्से में तापसे को थप्पड़ जड़ दिया. हालांकि, इसके बाद उनकी सरकार गिर गई.

आंध्र प्रदेश
इलाज कराने गए मुख्यमंत्री तो राज्यपाल ने सरकार गिरा दी
हरियाणा के बाद आंध्र प्रदेश में सरकार गिराने की मिशन पर काम शुरू हुआ. 1983 में ठाकुर रामलाल को आंध्र प्रदेश का गवर्नर नियुक्त किया गया. तेलगु देशम पार्टी के एनटी रामाराव राज्य के मुख्यमंत्री थे. रामाराव बहुमत साबित करने के बाद इलाज कराने के लिए अमेरिका गए. इसी बीच ठाकुर रामलाल ने उनकी सरकार भंग कर दी. रामाराव सरकार में वित्त मंत्री एन भास्कर राव को मुख्यमंत्री बना दिया गया. 

कर्नाटक
1988 और कर्नाटक में सरकार थी एसआर बोम्मई की. केंद्र की राजीव गांधी सरकार ने पी वेंकेटसुबैया को गवर्नर की कमान सौंपी. वेंकेटसुबैया ने बोम्मई की सरकार को यह कहते हुए गिरा दिया कि उनके पास बहुमत नहीं है. बोम्मई ने राज्यपाल के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.

झारखंड
2005 में झारखंड विधानसभा का रिजल्ट आया. 81 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी 30 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बन गई. जेएमएम को 17 और उसके सहयोगी कांग्रेस को 9 सीटें मिली. राज्य के राज्यपाल थे सैयत सिब्ते रजी. राज्यपाल ने बीजेपी को छोड़ जेएमएम के शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी. लेकिन दिल्ली से फरमान जाने के बाद राज्यपाल ने शिबू सोरेन से इस्तीफा मांग लिया. इसके बाद बीजेपी के अर्जुन मुंडा को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया.  हालांकि, मुंडा की सरकार भी ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाई और फिर शिबू सोरेन राज्य के सीएम बनाए गए. 

उत्तरप्रदेश
1998 में कल्याण सिंह की सरकार से कुछ विधायक बगावत कर बैठे. राज्यपाल रोमेश भंडारी थे. उन्होंने सरकार को बर्खास्त कर दिया. भंडारी ने जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री की शपथ दिलवा दी. भंडारी के इस फैसले को कल्याण सिंह ने हाईकोर्ट में चुनौती दी. हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद जगदंबिका पाल को हटाकर कल्याण सिंह सरकार को बहाल कर दिया.

उत्तराखंड
दिल्ली बीजेपी सरकार आने के बाद 2016 में पहली बार ऑपरेशन लोटस की शुरुआत हुई. आया कांग्रेस शासित प्रदेश उत्तराखंड चपेट में आया. हरीश रावत सरकार से कांग्रेस के 9 विधायकों ने बगावात कर दी. तत्कालीन राज्यपाल केके पॉल ने संवैधानिक संकट का हवाला देते हुए हरीश रावत से बहुमत साबित करने को कहा. केंद्र ने आनन-फानन में एक मीटिंग की और राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी. राष्ट्रपति ने केंद्र की सिफारिश को मानते हुए राष्ट्रपति शासन लगा दिया. हरीश रावत इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सख्त टिप्पणी की और कहा कि लोकतंत्र में राष्ट्रपति राजा नहीं होता है. हरीश रावत को बहुमत साबित करने का मौका मिलना चाहिए. राष्ट्रपति शासन को कोर्ट ने हटा दिया. कोर्ट के फैसले के बाद हरीश रावत ने विधानसभा में बहुमत साबित कर दिया. 

जम्मू-कश्मीर
जम्मू-कश्मीर में सियासी भूचाल के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस और पीडीपी ने मिलकर सरकार बनाने का दावा किया. तीनों पार्टियों ने एक लेटर तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक को भेज दिया. इधर, मलिक ने केंद्र से विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर दी. तीनों दलों ने विरोध किया तो सत्यपाल मलिक ने कहा कि राजभवन की फैक्स मशीन खराब है और उन्हें लेटर नहीं मिला. राज्यपाल के इस बयान की चारों ओर तीखी आलोचना हुई. इसके बाद जम्मू-कश्मीर का इतिहास और भूगोल बदल गया. अब  तक कश्मीर में पिछले 4 सालों से विधानसभा के चुनाव नहीं हुए हैं. हालां,कि कश्मीर अब केंद्रशासित प्रदेश बन चुका है.

Anil Jangid

Anil Jangid डिजिटल कंटेट क्रिएटर के तौर पर 13 साल से अधिक समय का अनुभव रखते हैं। 10 साल से ज्यादा समय डिजिटल कंटेंट क्रिएटर के तौर राजस्थान पत्रिका, 3 साल से ज्यादा cardekho.com में दे चुके हैं। अब Morningnewsindia.com और Morningnewsindia.in के लिए डिजिटल विभाग संभाल रहे हैं।

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