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Sadka Meaning : सदका क्या होता है, जकात से कितना है अलग, मुस्लिम बंधु जान लें

Sadka Meaning : रमजान का माहे मुबारक चल रहा है। रहमतों और बरकतों का दौर है। मुसलमानों के साथ ही इस समय गैर मुस्लिम भी इस्लामी तालीमात से दो चार हो रहे हैं। रमजान में आम तौर पर जकात के साथ ही एक और शब्द आपको सुनाई देता होगा, सदका। जी हां, इस्लाम में सदका देने का बहुत सवाब है। दरअसल नबी ए पाक का इर्शाद है कि सदका बुरे वक्त और बलाओं को टाल देता है। किसी गरीब को रूपया पैसा कपड़े या उसकी जरूरत का सामान देना सदके में शामिल हैं। वही जकात इससे अलग होती है। सदका हर मुसलमान पर लागू हो सकता है, लेकिन जकात केवल मालदार मोमिन पर ही लागू होती है।

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सदका क्या होता है?

सदका (Sadka Meaning) अरबी लफ्ज़ सदक़ाह से बना है जिसका मतलब एक तरह का दान है। इस्लामी शरीयत के मुताबिक अल्लाह की रज़ा की खातिर अपनी परेशानियों बलाओं को टालने के लिए या फिर अपने पास मौजूद किसी खास चीज को शुक्राने के तौर पर किसी जरूरतमंद गरीब मिस्कीन को दे देना सदका कहलाता है। पैगंबरे इस्लाम का फरमान है कि सदके में जरूरी नहीं है कि आप किसी को पैसा ही दें, बल्कि मोहताज की जरूरत के मुताबिक उसे सामान दे सकते हैं। मसलन खाना, आटा, चावल कपड़ा जैसी जरूरी चीजें भी सदके के तौर पर दी जा सकती है।

सदका किसे दें?

इस्लाम में मजबूर और जरूरतमंद शख्स की मदद करने का हुक्म है। इसके लिए अल्लाह ने बंदो को सदका जकात खैरात करने का आदेश दिया है। कुरान शरीफ में लिखा है कि गरीबों की मदद करों तो अल्लाह तुम्हारी मदद करेगा। रमजान के महीने में एक के बदले 70 नेकी मिलती हैं। ऐसे में सदका देने के लिए अपने आसपास के गरीबों और जरूरतमंदों पर नजर फेर ले। उन्हें पैसे के अलावा कपड़े खाने का सामान और बाकी जरूरत की चीजें देकर आप अपनी जान माल का सदका दे सकते हैं।

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जकात से कितना अलग है?

जकात हर मुसलमान पर फर्ज नहीं है। केवल साहिबे निसाब यानी मालदार मुसलमानों पर ही जकात फर्ज है। जबकि सदका कोई भी किसी को दे सकता है। बशर्ते वह खुद मोहताज नहीं है। सदके में दिया गया माल या सामान कभी भी खुद इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। क्योंकि उस पर किसी और का हक है। जकात सालाना कमाई का ढाई प्रतिशत होती है। जबकि सदके का कोई प्रारुप तय नहीं है। जितना चाहे अपनी मर्जी से दे सकते हैं।

नजर लगने पर लोग सदका उतारते हैं

भारत में मुसलमान नजर लगने पर सदका उतारते हैं। मतलब किसी की तबियत खराब हो तो उसका सदका उतारके गरीबों को दिया जाता है। ऐसा करने से नजर उतर जाती है। बलाएं टल जाती हैं। आज भी मां अपने बेटे को घर से बाहर भेजने से पहले सदका उतारती है। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया कि सदका और जकात से माल पाक होता है, वह कम नहीं होता है। अल्लाह हमें भी रमजान में सदका और जकात अदा करने की तौफीक नसीब अता फरमाएँ।

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