आज भले ही महिलाओं के लिए कई अधिकार बन गए हैं। महिला सशक्तिकरण के लिए हर कदम प्रयास किए जा रहे है। लेकिन कहते है ना कि किसी भी काम को आगे तक ले जाने के लिए उसकी शुरुआत अच्छी होनी चाहिए।
महिलाओं के सम्मान में नीवं रखने वाली सावित्रीबाई फूले ने शिक्षा की ऐसी अलख जगाई कि पूरा देश उन्हें महिला समाज सुधारक के रूप में जानने लगा। भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रिबाई फूले ने महिलाओं और पिछड़े वर्गों की शिक्षा को आगे बढ़ाने में हमेशा मददगार रही है। इतना ही नहीं महिलाओं के अधिकारों और उनकी शिक्षा को लेकर जब-जब भी बात आई है ये हमेशा आगे रही है।
कुरीतियों में भी बनाई खास पहचान
समाज में फैली कई सामाजिक बुराइयों जैसे अस्पृश्यता और बाल विवाह के खिलाफ भी लड़ी और अपनी विशेष पहचान बनाई। उन्होंने महिला शिक्षा के लिए तो कदम उठाए ही साथ ही जातिवाद और पितृसत्ता सहित समाज की बुराइयों को समाज से हटाने में पीछे नहीं रही। सावित्रीबाई ने महिलाओं के अधिकारों और समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए जो काम किए उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता।
पत्थर की मार झेलकर बनीं पहली शिक्षिका
भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रिबाई फूले। यह टाइटल पाना इतना आसान नहीं था। इसके पीछे सावित्रीबाई का कड़ा संघर्ष रहा है। महिलाओं की समानता के लिए भारतीय समाज में उन्होंने जो योगदान दिया उसकी वजह से आज भी वो हमारे बीच जिंदा है। सावित्रीबाई फुले जब पढ़ने स्कूल जाती थीं, तो लोग उन्हें पत्थरों से मारते थे। इतना ही नहीं जब वे स्कूल के लिए निकलती तो लोग अपने घरों से उन पर कूड़ा और कीचड़ भी फेंकते थे। इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और पहली महिला शिक्षिका बनने का गौरव हासिल किया।
परिचय
सावित्रिबाई फूले का जन्म 3 जनवरी, 1831 को वर्तमान महाराष्ट्र में स्थित नायगांव में हुआ था। बहुत ही कम आयु में इनका विवाह ज्योतीबा फूले से हुआ। प्लेग के रोगियों की सेवा करते हुए, वह खुद प्लेग की चपेट में आ गई और 10 मार्च 1897 को उनका निधन हो गया। आज भारतीय नारीवाद की जननी फूले की 126वीं पुण्यतिथि है।
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