संवैधानिक इतिहास का ऐतिहासिक फैसला जिसने सरकार को सोचने पर मजबूर कर दिया। ऐसा केस जिसमें आज तक की सबसे बड़ी बेंच बैठी। कौन सा था वह फैसला?
बात 1973 की है जब सुप्रीम कोर्ट में केरल सरकार के खिलाफ संत केसवानंद भारती का केस पहुंचता था।केस इतना जटिल हो चुका था कि उस पर निर्णय लेने के लिए 13 जजों की बेंच बैठी। इस ऐतिहासिक फैसले का निर्णय आज ही के दिन 24 अप्रैल 1973 को आया था। इस फैसले को इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच सरकार की हार के तौर पर देखा जाता है।
जानिए कौन थे केशवानंद भारती?
संविधान लागू होने के अगले साल से ही संविधान में सुधारों का क्रम शुरू हो गया था। इसी क्रम में जो सबसे पहले सुधार हुआ। वह था भूमि सुधार ।इसी विवादित विषय पर 1973 में केरल सरकार ने भूमि सुधार के लिए दो कानून बनाए। जिसके जरिए सरकार मठों की संपत्ति को जप्त करना चाहती थी। जब केशवानंद भारती को इसकी जानकारी प्राप्त हुई। तब वे इसके खिलाफ कोर्ट पहुंचे।
धार्मिक स्वतंत्रता आर्टिकल 26 हमें धर्म के प्रचार के लिए संस्था बनाने का अधिकार देता है। इसी के तहत सरकार ने जो संपत्ति जप्त की थी। उसके खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने केसवानंद भारती कोर्ट पहुंचे थे।
यह चर्चित केस केशवानंद भारती बनाम भारत सरकार जिसमें तत्कालिक इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी। उनको चुनौती देते हुए एक निर्णायक फैसला सुप्रीम कोर्ट के द्वारा सुनाया गया था। जिसमें मुख्य प्रश्न संविधान के मूल ढांचे को लेकर था। जो केसवानंद भारती के विरोध में आया था लेकिन था चर्चित विषय।
इस फैसले के समर्थन में अनेक संगठन सामने आए। जिन्होंने इंदिरा सरकार को तानाशाह बताते हुए शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन बताया।
क्या था खास इस केस में
केशवानंद भारती केस का सबसे बड़ा सवाल था। क्या सरकार संविधान की मूल भावना को बदल सकती है?
संविधान के मूल ढांचे को बदलने की प्रक्रिया के तहत यह ऐतिहासिक फैसला 13 जजों की सबसे बड़ी बेंच ने लिया था।
1-इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था सरकार संविधान से ऊपर नहीं है
2-सरकार संविधान के मूल ढांचे में बदलाव नहीं कर सकती।
3-न्यायालय ने यह भी कहा कि सरकार अगर किसी भी कानून में बदलाव करती है तो कोर्ट उसकी जुडिशरी रिव्यू, न्यायिक समीक्षा, पुनरावलोकन कर सकता है।
वास्तव में यह केस मूल अधिकारों और नीति निर्देशक तत्वों में टकराव का भी माना जाता है।
माना जाता है इसी ऐतिहासिक फैसले के बाद इंदिरा सरकार ने एक और केस इलाहाबाद केस की सुनवाई के बाद 25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लगा दी थी।
मूल अधिकार और नीति निदेशक तत्वों के टकराव की स्थिति आगे भी उपजी जिसमें मिनर्वा मिल्स केस ने अहम भूमिका निभाई।
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