आज देश की महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू का 65वां जन्मदिन है। यह आदिवासी समुदाय से देश की पहली और शीर्ष पद पर पहुंचने वाली दूसरी महिला है। द्रौपदी मुर्मू का का जन्म 20 जून 1958 को ओड़िशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में एक संथाल परिवार में हुआ था। हर किसी के जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं उन मुसीबतों का सामना करते हुए ही आगे बढ़ना सफल इंसान की पहचान होती है। द्रोपदी मुर्मू का जीवन भी आसान नहीं रहा। भारत के सबसे बड़े संवैधानिक पद पर पहुंचने के लिए उन्हें कई कई संघर्ष करने पड़े थे।
जीवन की हर उथल-पुथल को दृढ़ता से लड़कर पार करने वाली द्रोपदी मुर्मू का जीवन आसान नहीं रहा। आज देश के जिस सर्वोच्च पद पर वो विराजमान है उसके पीछे कई संघर्षों की कहानी रही है। द्रोपदी मुर्मू जिस आदिवासी परिवार से हैं वो झोंपड़ी मे रहा करते थे। उन्होनें वहां से निकलकर राष्ट्रपति भवन तक का सफर पूरा किया है। बहुत सारी समस्याओं का सामना कर आज वो लोगों के लिए एक मिसाल बन गई है।
मुर्मू का जीवन बेहद संघर्षशील रहा। 2009 में अचानक उन पर दुखों का पहाड़ टूट गया। उनके 25 साल के बेटे की अचानक मौत हो गई। इस दर्द से अभी बाहर नहीं निकली थी कि फिर बड़ी दुखद खबर ने उन्हें तोड़ दिया। उनके दूसरे बेटे की एक रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई। इसके अगले साल ही उनके पति की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। कम उम्र में ही द्रौपदी मुर्मू ने अपने पति को खो दिया। मुर्मू ने अपने कठिन समय में भी हिम्मत नहीं हारी। सिंचाई व ऊर्जा विभाग में जूनियर असिस्टेंट की नौकरी की। उसके बाद रायरंगपुर में अरविंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर में बतौर शिक्षक अपनी सेवाएं दी। आज वो देश के लोगों के लिए एक मिसाल बन चुकी हैं।
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