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अमेरिका, यूरोप का बैंकिंग संकट, आर्थिक मंदी की आहट तो नहीं?

यूरोप के क्रेडिट सूशी बैंक का हाल हुआ बेहाल। क्या फिर से आर्थिक मंदी आएगी? अमेरिका के 2 बड़े बैंक सिलिकॉन वैली और सिलिवर गैट कैपिटल कॉर के डूबने के बाद। अब यूरोप के क्रेडिट सूशी बैंक के हाल भी खराब चल रहे है।

क्या है पूरा मामला?
अमेरिका के 2 बड़े बैंकों के बाद यूरोप में गहराया आर्थिक संकट कहीं अन्य देशों को भी आर्थिक मंदी की चपेट में ना ले ले? विश्व और यूरोप के सबसे बड़े बैंकों में शुमार क्रेडिट सूची बैंक के बदहाल की खबरें 16 मार्च को विश्व पटल पर चर्चा के केंद्र में रही है। एक दिन में ही इसके 25% तक शेयर टूट गए साथ ही बैंक स्टॉक की कीमत भी एक तिहाई तक घट गई।
बता दें कि क्रेडिट सूची बैंक की गिनती यूरोप में ही नहीं पूरी दुनिया में सबसे बड़े बैंकों में शुमार है। यहां भी बैंक का स्टॉक बीते कारोबारी दिन में 24. 24 फ़ीसदी की गिरावट के साथ 1.70 सी एच एफ( स्वीटजरलैंड करंसी) रह गया स्टॉक की चाल भी लगातार धरा शाही हो रही है। यही वजह है कि 16 मार्च 2022 को इसकी कीमत 7.14 chf जिसमें अब तक 76% गिरावट आई है।

बैंकिंग की विश्वसनीयता पर सवाल
क्या इन बैंकों में डिपॉजिट पैसा वापस आएगा? लगातार फेल होते हुए बैंक चिंता का विषय बने हुई है। कहीं आर्थिक मंदी का यह पेडेमिक एपिडेमिक ना बन जाए। अमेरिका यूरोप के बाद भारत को भी अपनी चपेट में ना ले ले। हमें नहीं भूलना चाहिए कि भारत में भी इससे पहले कुछ बैंक डिफाल्टर हुए हैं। जिसमें लक्ष्मी विलास बैंक का उदाहरण है। दूसरा यस बैंक को भी कैसे जैसे करके डूबने से बचा लिया गया।

शेयर मार्केट
मॉनिटरी पॉलिसी, बैंकिंग का सीधा सीधा असर अर्थव्यवस्था और शेयर मार्केट, स्टॉक मार्केट पर पड़ता है। ऐसे में अमेरिका, यूरोप के बैंकिंग संकट से शेयर मार्केट भी हताशा में चल रहा है। लगातार बैंकिंग स्टार्टअप को भी निवेशक नहीं मिल रहे।
यही कारण है कि डिपॉजिट की हुई राशि का उपयोग करके यह बैंक सरवाइव कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि निवेशक ना मिलने पर डिपाजिट की हुई राशि क्या वापस मिलेगी?
कहना मुश्किल है फिर भी यह पैनिक अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैल गया है।

क्या होगा ग्लोबल स्टार्टअप पर प्रभाव?
डूबने वाले बैंक स्टार्ट-अप को बढ़ावा देते थे। जबकि अब निवेशक पल्ला झाड़ रहे हैं। ऐसे में ग्लोबल स्टार्टअप निवेशकों का फंडिंग बंद होना, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्टार्टअप कंपनियों को भी प्रभावित करेगा। ऐसे स्टार्टअप जो कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ट्रांजैक्शन में मदद करते थे। अब पैसों की कमी से जूझ रहे हैं। यही कारण है कि पिछले 5 माह से भारत में भी एक भी यूनिकॉर्न नई कंपनी, नया स्टार्टअप नहीं बना है। 

क्या होता है यूनिकॉर्न?
जब किसी स्टार्टअप की पूंजी 8000 करोड़ के पार हो जाती है। तब वह यूनिकॉर्न की श्रेणी में आ जाता है। ऐसे में नए स्टार्टअप अब उभरकर आना कम हो गए हैं। कहीं ना कहीं भारत ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मुद्रा की कमी और उसके सरकुलेशन में कमी देखने को मिल रही है।

क्या होगा भारत पर प्रभाव?
अमेरिका का पूरा ध्यान भारत पर  रहा। हिंडन वर्ग की सारी कोशिश अडानी पर थी। उधर अमेरिका के दो बैंक डूब गए। इस अफरातफरी से ना केवल शेयर मार्केट बल्कि स्टॉक मार्केट और बैंकिंग प्रणाली पर भी संकट के बादल गहरा रहे हैं। अमेरिका से उठा बैंकिंग का टोरनैडो कहीं यूरोप के साथ-साथ भारत को भी अपनी चपेट में ना ले ले।

भारत की बैंकिंग प्रणाली आरबीआई ने सुचारू रूप से कंट्रोल और रेगुलेट कर रखी है। यही कारण है कि कम से कम  डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के अनुसार 5 लाख तक की राशि तो कम से कम निवेशक को वापस मिल जाएगी। यहां पैनिक होने की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता है अपनी सेविंग को ठीक प्रकार से अलग-अलग बैंकों में निवेश करें। ताकि वह सुरक्षित रहे।
भारत की मौद्रिक नीति अभी ठीक चल रही है। हमें पैनिक होने की जरूरत नहीं। हां, अमेरिका और यूरोप में बैंकिंग प्रणाली पर विश्वसनीयता अभी खरी नहीं उतर रही। 2008 की आर्थिक मंदी जिसमें वॉशिंगटन म्यूच्यूअल बैंक डूबा था। उसके बाद 2023 में अब सिलिकॉन वैली का यह हाल देखकर अमेरिका और यूरोप में पैनिक मचा हुआ है। जिस बैंक के ऐसेट इतने अधिक होंगें, यदि वह अपनी  लायबिलिटी  ठीक से नहीं निभाता है, तो यह विश्व स्तर पर चिंता का विषय बनेगा ही।

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