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जो रमने को विवश कर दे वो राम। घट-घट के वासी राम में शुरू हुई प्रभु श्रीराम की ज्ञान यात्रा

-रामचरित मानस में छिपे गूढ़ रहस्यों को विस्तार से समझाया
-प्रदेश के कोने कोने से पहुंचे रामभक्त
-श्रोताओं से भरा हॉल, जगह के अभाव में श्रद्धालुओं को लौटना पड़ा वापस
-भजनों और चौपाइयां सुन श्रोता हुए श्रद्धा से सराबोर

Ghat Ghat Ke Vasi Ram:  केवट प्रसंग के पीछे छिपे रहस्य, सीता के जन्म के पीछे का रहस्य, कैकई के वरदान ऐसे कई धार्मिक प्रसंगों के बारे में रविवार को जयपुर ​में पूर्ण व्याख्या की गई। मौका था श्री धर्म फाउंडेशन ट्रस्ट के तत्वावधान में जे.एल.एन. मार्ग स्थित विद्याश्रम स्कूल के महाराणा प्रताप सभागार में आयोजित ’घट-घट के वासी राम’ -राम से प्रभु श्रीराम तक की ज्ञान यात्रा- राम कथा आयोजन का। जहां कथाकार पंकज ओझा ने भगवान राम के पृथ्वी पर विस्तार के बारे में सभी को जानकारी दी। श्री धर्म फाउंडेशन ट्रस्ट अध्यक्ष सुधीर जैन गोधा और आयोजन समिति के मुख्य समन्वयक गब्बर कटारा ने बताया कि इस आयोजन में कथाकार पंकज ओझा ने भगवान राम के पृथ्वी पर विस्तार, अनेक देशों की राम कथाओं और रामचरित्र के प्रचलन और भगवान राम के साधारण मनुष्य से लोकनायक बनने के सफर बताया गया। जिससे जन-जन के आराध्य प्रभु श्रीराम के हर पक्ष के बारे में जनता को पता लग सके।

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राम कथा के गूढ़ रहस्यों की दी जानकारी

यात्रा में कथाकार ने भगवान श्रीराम के जीवन की विभिन्न लीलाओं के बारे में बताते गए। जिसमें केवट प्रसंग के पीछे छिपे रहस्य में क्षीरसागर में भगवान विष्णु शेष शैया पर विश्राम कर रहे थे। वहीं लक्ष्मी जी उनके पैर दबा रही थीं। तब विष्णुजी के एक पैर का अंगूठा शैया के बाहर आ गया। क्षीरसागर में जब एक कछुए ने इस दृश्य को देखा उसके मन में विचार आया कि यदि मैं भगवान विष्णु के अंगूठे को अपनी जिह्वा से स्पर्श कर लूं तो मेरा मोक्ष हो जाएगा। यह सोचकर वह कछुआ भगवान विष्णु के चरणों की ओर बढ़ा। उसे ऐसा करते शेषनाग ने देख लिया। उसे भगाने के लिए जोर से फुंफकारा। फुंफकार सुन कर कछुआ तो भाग कर छुप गया। कुछ समय पश्चात जब शेषजी का ध्यान हटा तो पुनः प्रयास किया। इस बार लक्ष्मीजी की दृष्टि उस पर पड़ी।उन्होंने उसे भगा दिया। इस प्रकार उस कछुए ने अनेकों प्रयास किए पर शेषजी और लक्ष्मी माता के कारण उसे कभी सफलता नहीं मिल सकी। यहां तक कि सृष्टि की रचना हो गई और सतयुग बीत जाने के बाद त्रेता युग आया। कछुए को पता था कि त्रेता युग में क्षीरसागर में शयन करने वाले विष्णु राम का, शेषजी लक्ष्मण का और लक्ष्मी देवी सीता के रूप में अवतरित होंगे। वनवास के समय उन्हें गंगा पार उतरने की आवश्यकता पड़ेगी। इसीलिए वह भी केवट बनकर वहां आए। एक युग से भी अधिक काल तक भगवान का चिंतन करने के कारण उसने प्रभु के सारे मर्म जाने। इसीलिए उसने श्रीराम से यह कहा था कि मैं आपका मर्म जानता हूं, मानसकार गोस्वामी तुलसीदास भी इस तथ्य को जानते थे। इसीलिए अपनी चौपाई में केवट के मुख से कहलवाया- ‘कहहि तुम्हार मरमु मैं जाना।’

कैसे हुआ सीता जन्म

सीता के जन्म के पीछे का रहस्य खोलते हुए ओझा ने कहा कि राजा जनक मिथिला के राजा थे। एकबार मिथिला में अकाल के दौरान राजा जनक ने ऋषि, मुनियों और विद्वानों से सलाह ली। ऋषि मुनियों ने कहा कि राजा जनक यदि आप स्वयं हल से भूमि को जोतेंगे तब देवराज इन्द्र की कृपा से मिथिला पर होगी। राजा ने अपने राज्य से अकाल को खत्म करने के लिए और भूमि पर हल चला रहे थे। तभी हल एक जगह अटका। राजा जनक ने देखा हल की नोक एक स्वर्ण कलश में अटकी हुई है। राजा जनक ने स्वर्ण कलश को निकालकर देखा तो उसमें दिव्य ज्योति लिए एक नवजात कन्या थी। धरती मां की कृपा से प्राप्त इस कन्या को राजा जनक ने अपनी पुत्री माना। कन्या कलश में हल लगने की वजह से राजा को मिली थी इसी कारण इसका नाम सीता रखा। क्योंकि हल की नोक को सीत कहते हैं। इसी तरह कथाकार ओझा ने हनुमानजी और बाली का युद्ध, गिद्धराज जटायु और भीष्म पितामह का प्रसंग, 1 हजार अमर राक्षसों के वध को हनुमानजी ने कैसे किया, राम की शक्ति पूजा आदि प्रसंगों पर भी विस्तार से प्रकाश डाला।

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स्वर लहरियां सुन श्रोता हुए श्रद्धा में लीन

संगीतमय कथा में भजनों और मानस की चौपाइयों की मधुर स्वर लहरियां भी कार्यक्रम में गूंजती रही। जिसने छोटी काशी के रामभक्तों को श्रद्धा से भर दिया। जहां रामधुन, भजनों का भी दर्शकों ने पूरा आनंद लिया।

प्रदेश के विभिन्न शहरों से शामिल हुए

कार्यक्रम में प्रदेश के विभिन्न शहरों से संत, महंत, उद्यमी, व्यापारी, नेतागण, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षक, विद्यार्थियों ने यहां भाग लिया। सभागार में कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही लोगों का आना शुरू हो गया। कार्यक्रम में श्री धर्म फाउंडेशन ट्रस्ट, अनासक्त चौतन्य ट्रस्ट, श्री जे.डी. माहेश्वरी का भी योगदान रहा।कार्यक्रम में संगीत छवि जोशी और संगीत संयोजन और पखावज वादन मनभावन डांगी ने किया। वायलिन पर रमेश मेवाल, गायन और हारमोनियम में दिनेश खींची, तबले पर हरीश गौतम, परकशन दीपेश, की-बोर्ड और कोरस तथा सिंगर माधवी, राघवी और प्रियंका रही। कार्यक्रम में 15 बड़े आर्टिस्ट्स की केनवास पर बनाई भगवान राम की पेंटिंग्स को भी प्रवेश पर रखा गया। वहीं युवा कलाकार ने कथा की लाइव पेंटिंग भी बनाई।

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Ambika Sharma

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