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जयपुर का लहरिया कैसे बनता है, राजस्थान की हस्तकलाएँ स्पेशल स्टोरी, Jaipur Lahariya RAS notes pdf

Jaipur ke Lahariya : वीरों की धरती राजस्थान अपनी शौर्यगाथाओं के लिए आज भी पूरी दुनिया में मशहूर है। अपने मज़बूत इरादों के साथ ही तलवारों और भालों से दुश्मन के छक्के छुड़ाने में माहिर राजपूताना में प्राचीन काल से ही हस्तकलाएं कला फलती फूलती रही है। राजस्थान की हस्तकलाएँ स्पेशल स्टोरी सीरीज में हम आपको आज पिंकसिटी जयपुर की नायाब कला लहरिया (Jaipur ke Lahariya) के बारे में बताने जा रहे हैं। लहरिया राजस्थान की एक पारम्परिक ‘टाई-डाई’ पोशाक कला है जिसमें कपड़ों पर कुछ स्पेशल पैटर्न में गहरे रंगों के डिजाइन बनाए जाते हैं। लहर या तरंग के आकार से मिलते-जुलते होने के कारण इसका नाम ‘लहरिया’ पड़ा है। इसे जयपुर और मेवाड़ में तैयार किया और पहना जाता है, लेकिन अब पूरे भारत में लहरिया की माँग है। तो चलिए जयपुर की लहरिया कला की दास्तान जान लेते हैं। राजस्थान की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे बंदे ये पोस्ट जरूर शेयर करें।

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जयपुर का लहरिया कैसे बनता है (Jaipur ke Lahariya)

राजस्थान के उल्लासमय लोक सांस्कृतिक पर्व तीज के मौके पर धारण किया जाने वाला सतरंगी परिधान लहरिया (Jaipur ke Lahariya) खुशनुमा जीवन की मुस्कुराती तस्वीर पेश करता है। सावन में पहना जाने वाला लहरिया हरियाली की चादर ओढे धरती के हरित श्रृंगार से प्रेरित है। राजस्थान का ये पारंपरिक पहनावा महिलाओं के सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। नव-विवाहिताओं और शादी से पहले लड़कियों को ससुराल और पीहर की ओर से लहरिया (Jaipur ke Lahariya) पहनाया जाता है। चटख रंगों की यह ओढ़नी कभी फैशन से बाहर नहीं होती है। इसी तरह की पीले रंग की ओढ़नी पोमचा कहलाती है। इसमें कमल के फूल बने होते है। यह बच्चे के जन्म के अवसर पर पीहर पक्ष की ओर से बच्चे की मां को ओढ़ाई जाती है। जयपुर का यह बरसों पुराना ओढ़नी उद्योग पूरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान रखता है।

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जयपुर लहरिया उद्योग के सामने चुनौतियां (Jaipur ke Lahariya Challenges)

जयपुर की गलियों में कई परिवार इस हुनर के दम पर अपनी रोज़ी रोटी चला रहे हैं। अप्रत्यक्ष तौर पर करीब 20 हज़ार लोगों को लहरिया उद्योग (Jaipur ke Lahariya Challenges) से काम मिल पा रहा है। लेकिन आर्थिक मंदी की मार से देश की ये विरासत इन दिनों खुद को बचा नहीं पा रही है। कोरोना काल में तो यह कारोबार घाटे का सौदा साबित हुआ। लहरिया और पोमचा (Jaipur ke Lahariya Challenges) का अधिकांश कारोबार कपड़ा उद्योग से जुड़ा हुआ है। लॉकडाउन में पलायन कर गए कारीगरों के कारण इसकी स्थिति और खराब होती चली गई। इसके अलावा ओढ़नी उद्योग से जुड़े व्यापारी और कारीगर सरकार की विभिन्न योजनाओं से भी अनजान हैं। अगर इन मेहनतकश कामगारों को MSME योजनाओं का समय पर लाभ मिलना शुरू हो जाएं तो गुलाबी नगरी के लहरिया उद्योग को एक नई दिशा प्रदान की जा सकती है।

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राजस्थान सरकार क्या कर रही है

राजस्थान की भजनलाल सरकार (Bhajanlal Sarkar Rajasthan) ऐसी विषम परिस्थितियों में भी लगातार कोशिश कर रही है कि विश्व में जयपुर का गौरव कही जाने वाली ऐसी तमाम परपंरागत कलाओं और विलुप्त होते काम धंधों की फिर से कायापलट की जा सके। इसी मकसद को ध्यान में रखते हुए राजस्थान सरकार लगातार ये कोशिश कर रही है कि किस तरह प्रदेश की ऐसी तमाम ऐतिहासिक और व्यापारिक धरोहरों को संजोया जा सके। राजस्थान सरकार की ओर से इस कला के संरक्षण के लिए फेस्टिवल आयोजित किये जा रहे हैं। लहरिया और पोमचा उद्योग (Jaipur ke Lahariya) से जुड़े तमाम मेहनतकश कारोबारी और हुनरमंद कारीगर राजस्थान सरकार के उद्धयोग मंत्रालय तथा MSME विभाग से संपर्क करके विभिन्न लाभकारी योजनाओं की जानकारी एवं समुचित मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं।

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