जयपुर। इस बार जन्माष्टमी का पर्व 26 अगस्त को मनाई जा रही है। इस दौरान देश में कई जगहों पर जन्माष्टमी के उवसर पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है तो कहीं मेलों का आयोजन किया जाता है। राजस्थान में भी जन्माष्टमी के अवसर कई तरह के कार्याक्रमों का आयोजन बड़ी धूमधाम के साथ किया जाता है। लेकिन, आपको बता दें कि राजस्थान में एक ऐसी जगह भी है जहां एक दरगाह (Narhad Dargah) पर जन्माष्टमी के अवसर पर मेला लगता है जिसमें हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं।
यह दरगाह राजस्थान के झुंझुनूं जिले के नरहड़ गांव में स्थित है जिसको नरहड़ पीर बाबा की दरगाह (Narhad Dargah) के नाम से जाना जाता है। इसी दरगाह पर हर साल जन्माष्टमी के मौके पर यहां 3 दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें भारी संख्या में हिन्दू श्रद्धालु पीर बाबा के यहां पहुंचते हैं। नरहड़ पीर बाबा का असली नाम नाम सैयद अलाउद्दीन अहमद था जो अजमेर के प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य थे। यह भी कहा जाता है कि दरगाह ख्वाजा साहब की दरगाह से भी पुरानी है। यहां पर हर साल जन्माष्टमी और उर्स के मौके पर विशाल मेला लगता है।
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हर साल की तरह इस बार 25 से 27 अगस्त तक जन्माष्टमी के मौके पर इस दरगाह पर मेले का आयोजन किया जा रहा है। माना जा रहा है कि इस बार भी लाखों की संख्या में यहां पर लोग इकट्ठा होने वाले हैं। नरहड़ दरगाह (Narhad Dargah) की सबसे खास बात ये है कि यहां हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों के लोग बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। जन्माष्टमी के मौके पर यहां हिन्दू श्रद्धालुओं की संख्या मुस्लिम श्रद्धालुओं से भी अधिक होती है।
दरगाह (Narhad Dargah) कमेटी के चेयरमैन खलील बुडाना के मुताबिक नरहड़ दरगाह में देश के कोने-कोने से हिन्दू-मुस्लिम सहित सभी धर्मो के लोग पहुंचते हैं। इस मेले की विशेषता ये है कि कृष्ण जन्माष्टमी की वजह यहां पर मुस्लिमों की तुलना में हिन्दूओं की संख्या अधिक रहती है।
नरहड़ दरगाह धार्मिक मान्यताओं का केंद्र होने के साथ ही ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इतिहासकारों के मुताबिक नरहड़ किसी समय जोध राजपूतों की राजधानी हुआ करता था। यह भी कहा जाता है कि उस समय यहां पर 52 बाजार हुआ करते थे।
इतिहासकारों के मुताबिक लोदी वंश के शासनकाल में यहां का गवर्नर लोदी खां हुआ करता था। यहां पर ही लोदी खां और राजपूतों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें लोदी खां को लगातार हार का सामना करना पड़ा। हारते-हारते लोदी खां अपनी सेना और घोड़ों के साथ नरहड़ आ गया। उसकी सेना थक चुकी थी और घोड़े भी दौड़ने से लाचार हो गए थे। तब एक फकीर ने लोदी खां को बताया कि वह जिस जगह पर डेरा डाले हुए है, वह एक पीर बाबा की मजार है।
फकीर ने लोदी खां से कहा कि वह पीर बाबा की मजार से दूर हटकर युद्ध लड़े तो उसे जरुर जीत हासिल होगी। फकीर की सलाह मानकर लोदी खां ने अपनी सेना के साथ पीर बाबा की मजार से कुछ दूरी पर डेरा डाल लिया। कहा जाता है कि उसके बाद हुए युद्ध में लोदी खां को विजय प्राप्त हुई। तभी से लोग उस पीर बाबा को अपना रक्षक मानने लगे और उनकी मजार पर माथा टेकने लगे।
इस दरगाह परिसर में ही 3 मुसाफिरखाने भी बने हुए हैं। यहीं पर पीर बाबा के एक साथी को भी दफनाया गया है, जिसको ‘धरसो वालों का मजार’ कहा जाता है। बुलंद दरवाजे का निर्माण सरदार शहर निवासी और आंध्र प्रदेश के प्रवासी प्रताप सिंह छाजेड़ ने करवाया था। यह दरवाजा 75 फीट ऊंचा और 48 फीट चौड़ा है। आज से 84 साल पहले मजार के प्रवेश द्वार पर चांदी की परत अहमद वक्स रुकबुद्दीन ने चढ़वाई थी। यहां पर हरियाणा के एक श्रद्धालु सवाई सिंह ने पीतल का 45 किलोग्राम वजनी छत्र बनवाकर गुंबद पर लगवाया था।
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