Maha Shivratri 2024: इस वर्ष महाशिवरात्रि का पर्व 8 मार्च, शुक्रवार को मनाया जाएगा। हिंदुओं की आस्था का यह पर्व हर साल बड़े धूम-धाम से सेलिब्रेट किया जाता हैं। इस दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा विधि-विधान से की जाती हैं। दुनियाभर के शिवभक्त इस दिन भोले बाबा को अपने-अपने तरीके से खुश करने का प्रयास करते हैं। दुनियाभर के शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ जमा होती हैं। यहां हम राजस्थान के प्राचीन शिव मंदिर के बारे में बता रहे हैं।
जिस मंदिर की हम बात कर रहे हैं, उसका नाम हैं ‘ताड़केश्वर महादेव मंदिर।’ यह मंदिर जयपुर शहर (Jaipur News) के चौड़ा रास्ता एरिया में मार्केट के बीचोंबीच स्तिथ हैं। मंदिर की स्थापत्य कला में राजस्थानी स्थापत्य और स्थानीय संस्कृति की झलक दिखाई पड़ती हैं। साल 2019 में यूनेस्को ने जयपुर शहर को विश्वधरोहर की लिस्ट में शामिल किया था, यह मंदिर भी उन्हीं ऐतिहासिक धरोहरों में शामिल हैं। आइए, जानते हैं मंदिर से जुड़ी खास बातें..
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जयपुर की स्थापना वर्ष 1727 में हुई थी। शहर की स्थापना आमेर के महाराज जय सिंह द्वितीय द्वारा की गई थी। उन्हीं के नाम पर शहर का नाम जयपुर पड़ा। स्थापना के समय जयपुर का नाम ‘जैपर’ हुआ करता था, जो कालांतर में जयपुर हो गया। कहते हैं, शहर की स्थापना से पहले ही यहां शिवलिंग स्थापित है।
बताया जाता हैं कि जिस स्थान पर ताड़केश्वर महादेव मंदिर स्थित है, वहां किसी समय बड़ी संख्या में ताड़ के वृक्ष हुआ करते थे। एक बार अंबिकेश्वर महादेव मंदिर (Ambikeshwar Mahadev Temple) के व्यास सांगानेर की तरफ जाते समय इस जगह पर कुछ देर रुके थे। तभी उन्हें यहां स्थित शिवलिंग के सबसे पहले दर्शन हुए।
ताड़केश्वर महादेव मंदिर (Tadkeshwar Mahadev Mandir) के मौजूदा स्वरूप का निर्माण जयपुर शहर की स्थापना के समय किया गया। इससे पहले यहां छोटा-सा मंदिर स्वयंभू शिवलिंग के लिए निर्मित किया गया था। जयपुर रिसायत से वास्तुविद विद्याधर जी ने ही इस मंदिर की रूपरेखा तैयार की थी। बताते है कि ताड़केश्वर महादेव मंदिर को पहले ताड़कनाथ के नाम से जानते थे। यह शिवलिंग स्वयंभू है यानी कि स्वत: प्रकट हुए, इनकी किसी ने स्थापना नहीं की।
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जयपुर वासियों में ताड़केश्वर महादेव के प्रति गहरी आस्था है। मान्यता हैं कि सच्चे दिल से मांगी गई हर मुराद यहां भोले बाबा पूरी करते हैं। इच्छा पूरी होने के बाद भक्त यहां शिवलिंग का अभिषेक कराया जाता हैं। इस दौरान भक्त श्रद्धानुसार दूध और घी से शिवजी की जलहरी भरते हैं। सालभर भक्तों की भीड़ यहां जुटी रहती हैं। सावन के महीने में शिवलिंग पर जल अर्पित करने के लिए यहां शिवभक्तों की लंबी-लंबी कतारें देखने को मिलती हैं।
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