Makar Sankranti 250 year old Tradition: मकर संक्रांति पर देशभर में पतंगें उड़ाई जाती है। लेकिन करौली जिले का आसमान सूना ही नजर आता है। धार्मिक नगरी करौली के लोग इस त्यौहार पर पतंगबाजी नहीं करते है। करौली के लोग रक्षाबंधन और कृष्ण जन्माष्टमी पर ही पतंगे उड़ाने का आनंद लेते हैं।
इतिहासकार बताते है कि लगभग 250 साल पहले महाराजा गोपाल सिंह के समय से ही करौली में Raksha Bandhan और Janmashtami पर पतंग उड़ाने की परंपरा निभाई जा रही है। करौली एक पुरानी रियासत है और यही वजह है कि यहां के लोग आज भी उसी परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं।
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करौली में राजाओं के जमाने से ही मकर संक्रांति पर दान-पुण्य की पुरानी परंपरा रही है। संक्रांति के दिन यहां लोग जगह-जगह भंडारे आयोजित करते। साथ ही गरीबों के बीच मंगोड़े, गुड़, चंदिया और गर्म कपड़े बांट कर पुण्य अर्जित करते है। करौली के व्यापारी मिलकर भंडारे का आयोजन करते हैं। मकर संक्रांति के पर्व पर दान की परंपरा यहां पुरानी है, इसलिए व्यापारी लोग मंगोड़ा, पकौड़ी, पुआ, गर्म कपड़े सहित सभी प्रकार के दान करते है।
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भारत के अलग-अलग राज्यों में Makar Sankranti को मनाने अपना एक अलग अंदाज होता है। हर जगह के अपने-अपने रीति-रिवाज है। पंजाब में इस त्योहार को लोहड़ी, तमिलनाडु में पोंगल, गुजरात में उत्तरायण और उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर खिचड़ी के नाम से जानते है।
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