जयपुर। राजस्थान की राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने 40 साल के राजनीतिक कॅरियर में बड़े-बड़े नेताओं को मात दी है और अपना राजनीतिक वर्चस्व कायम रखा है. लेकिन अब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती सचिन पायलट हैं जो अपने ही हैं. गहलोत 2018 में मुख्यमंत्री जरूर बन गए, लेकिन पायलट ने उन्हें चौन की नींद सोने नहीं दिया. अब एक बार फिर से पायलट ने अपने बगावती तेवर दिखाए हैं और और अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
1. वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल के भ्रष्टाचार की मांग
सचिन पायलट ने ऐलान किया कि वो 11 अप्रैल को अनशन करेंगे. राजस्थान में बीजेपी नेता वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में हुए कथित भष्टाचार की जांच की मांग को लेकर पायलट कांग्रेस सरकार के खिलाफ मैदान में उतर रहे हैं.
2. 2018 से जारी है जंग
राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच सियासी वर्चस्व की यह जंग आजकल की नहीं बल्कि 2018 के चुनाव के बाद से ही चली आ रही है. नवंबर 2018 में विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद कांग्रेस राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन उसे 99 सीटें ही मिल सकीं. ऐसे में मुख्यमंत्री पद को लेकर अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों नेता अड़े थे लेकिन अश्गहलोत जीत गए.
3. बगावत की सूचना लीक
सचिन पायलट के मन में लगातार यह प्रश्न था कि वो राजस्थान के मुख्यमंत्री पद के हकदार थे और अशोक गहलोत बाजी मार ले गए. पायलट ने विधायकों का समर्थन जुटाना शुरू किया. उन्हें लगा कि उनके साथ 35 से 40 कांग्रेस विधायक हैं, लेकिन सूचना लीक होने से फेल हो गए 2020 में डेढ़ दर्जन विधायकों के साथ सचिन पायलट ने बगावत का झंडा उठा लिया और अशोक गहलोत का तख्ता पलटने की कोशिश की, लेकिन नाकामयाब रहे. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अपने 80 समर्थक विधायकों की बाड़ेबंदी करनी पड़ी. 34 दिन तक विधायकों के साथ सीएम गहलोत भी पहले जयपुर और फिर जैसलमेर के होटलों में रहे.
4. प्रियंका के दखल से हुई सुलह
2020 के दूसरे सप्ताह में सचिन पायलट की प्रियंका गांधी से मुलाकात हुई. कई मुद्दों पर बातचीत के बाद कुछ शर्तों पर सचिन पायलट मानने को राजी हुए. 14 अगस्त 2020 को गहलोत बहुमत साबित करने में कामयाब रहे. इसी तरह राज्य सरकार पर आया सियासी संकट टल गया.
5. इसलिए हो रही है खींचतान
सचिन पायलट और अशोक गहलोत दोनों ने कांग्रेस हाईकमान के सामने चुनौती खड़ी कर दी है. दोनों नेताओं के बीच सारी लड़ाई मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर है. पायलट चाहते हैं कि उन्हें सीएम की कुर्सी दी जाए जबकि गहलोत इसके लिए राजी नहीं हैं. पार्टी नेतृत्व भी दोनों ही नेताओं को गंवाना नहीं चाहता. राजस्थान में गहलोत कांग्रेस का वर्तमान हैं तो भविष्य पायलट हैं. ऐसे में पार्टी किसी एक को चुनने की स्थिति में नहीं है और एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रख रही है. पिछले चार साल से वो संकट को टाल रही है, लेकिन पायलट अब पूरी तरह से आरपार के मूड में हैं. विधानसभा चुनाव में महज छह महीने बचे हैं और उन्हें लगता है कि अभी नहीं तो फिर कभी नहीं. देखना है कि इस बार उनके तेवर पार्टी के अंदर क्या और कितना असर करते हैं.
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