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Trinetra Ganesh Ji : यहां पर है दुनिया का सबसे पहला गणेश मंदिर, पूरे परिवार के साथ विराजमान है त्रिनेत्र गणेशजी की मूर्ति

  • गणेशजी को मनाने के लिए भगवान कृष्ण ने यहीं की थी पूजा
  • गणेशजी का तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक
  • राजा के सपने में आने के बाद प्रकट हुए गणेशजी

 

सवाईमाधोपुर। घर में कोई भी शुभ काम होता है तो गणेशजी को प्रथम निमंत्रण दिया जाता है। राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले के रणथंभौर में ऐसा ही एक मंदिर है जहां पर प्रदेशभर से भक्त आकर गणेशजी को घर पर आने के लिए मनाते हैं। गणेशजी के इस अनूठे मंदिर की खास बात यह है कि यह दुनिया का पहला ऐसा मंदिर है जहां पर गणेशजी पूरे परिवार के साथ विराजमान है। जानते हैं मंदिर में और क्या खास बाते हैं- 

 

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गणेशजी को मनाने के लिए भगवान कृष्ण ने यहीं की थी पूजा

यह विश्व का पहला गणेश मंदिर माना जाता है। यहां गणेश जी की पहली त्रिनेत्री प्रतिमा विराजमान है। इस प्रतिमा के बारे में जानकर आपको हैरानी होगी कि यह प्रतिमा स्वयंभू प्रकट है। देश में ऐसी केवल चार गणेश प्रतिमाएं ही हैं। ऐसा कहा जाता है कि कृष्ण और रूकमणी विवाह के समय बाधा आने पर भगवान कृष्ण ने गणेशजी को जिस स्थान पर मनाया वो रणथंभौर ही था। इसी कारण रणथम्भौर को भारत का प्रथम गणेश कहा जाता है। इस ​प्रसिद्ध त्रिनेत्र गणेश जी मंदिर को रणतभंवर मंदिर भी कहा जाता है।

 

तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक 

भगवान गणेश त्रिनेत्र रूप में विराजमान है जिसमें तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को विशाल मेला लगता है जिसमें लाखों भक्तगण शामिल होते हैं। इसकी एक और खास बात यह है कि पूरी दुनिया में यह एक ही मंदिर है जहां गणेश जी अपने पूर्ण परिवार के साथ विराजमान है। गणेशजी की दोनों पत्नियां- रिद्दि और सिद्दि एवं दो पुत्र- शुभ और लाभ, के साथ विराजमान है। भगवान त्रिनेत्र गणेश की परिक्रमा 7 किलोमीटर के लगभग है। 

 

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राजा के सपने में आने के बाद प्रकट हुए गणेशजी

कहा जाता है कि 1299-1301 ईस्वी के बीच महाराजा हम्मीरदेव चौहान और दिल्ली शासक अलाउद्दीन खिलजी के बीच रणथम्भौर का युद्ध हुआ था। इस दौरान दुश्मनों ने कई महीनों तक रणथम्भौर दुर्ग को घेरकर रखा। ऐसे में दुर्ग में खाद्य सामग्री का अभाव हो गया। तब गणेशजी ने हमीरदेव चौहान के सपने में आकर उस स्थान पर पूजा करने के लिए कहा जहां आज यह गणेशजी की प्रतिमा है। जब हमीर देव वहां पहुंचे तो स्वयंभू प्रकट गणेशजी की प्रतिमा मिली। उसके बाद हम्मीर देव ने इस मंदिर का निर्माण कराया। 

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