नवरात्रि विशेष मेले।
राजस्थान के अलग-अलग कोनों में नवरात्रि के उपलक्ष्य पर देवी के प्रसिद्ध मंदिरों में घट स्थापना, अखंड ज्योति और विधि विधान से यज्ञ हवन के साथ-साथ मेलों का आयोजन किया जाता है। जहां स्थानीय श्रद्धालुओं के साथ साथ आसपास के राज्यों से भी हजारों, लाखों की संख्या में भक्त और श्रद्धालु पहुंचते हैं। समस्त मनोकामनाएं पूरा करने वाली देवी किसी को भी निराश नहीं करती है।
आस्था के कुंभ में यहां चैत्र नवरात्रि पर भव्य मेलों का आयोजन किया जाता है। मां के शक्ति पीठ और लोकदेवियों के मंदिर के बारे में अनेक कथाएं और कहानियां प्रचलित हैं। राजस्थान में नवरात्रि पर जो विशेष मेले भरते हैं। उसमें कैला देवी का मेला विश्व प्रसिद्ध है।
कैला देवी।
जयपुर से लगभग 195 किलोमीटर दूरी पर कैला देवी अभ्यारण के पास ही एक पुराना मंदिर है। कालीसिल नदी के पास स्थित कैला देवी मंदिर में माता कैला देवी और चामुंडा की संयुक्त मूर्तियां है। यहां स्थापित दो प्राचीन मूर्तियों में जो बाई तरफ है जिसका मुंह थोड़ा टेढ़ा है। वह कैला देवी है। तथा दाहिनी और चामुंडा माता है। अष्ट भुजाधारी कैला देवी की अनेक कथाएं प्रचलित है। मान्यता है कि भगवान कृष्ण के माता-पिता देवकी और वासुदेव जब जेल में थे। तब कंस उनकी कन्या को मारना चाहता था। वह कन्या कोई और नहीं, योगमाया कैलादेवी ही थी। जो यहां पर प्रतिस्थापित हो गई। माता का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और प्रभावशाली है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं को लेकर पहुंचते हैं।कोई व्रत, उपवास करता है तो कोई दंडवत शाश्वत प्रणाम करते हुए, माता के जयकारे के साथ दरबार में पहुंचते है।
त्रिपुर सुंदरी मेला तलवाड़ा।
बांसवाड़ा से 18 किलोमीटर दूर तलवाड़ा में अरावली से आच्छादित पहाड़ियों में भव्य प्राचीन सुंदर त्रिपुर सुंदरी का मंदिर है। चैत्र नवरात्रि पर अष्ट भुजाधारी सिंह वाहिनी, माता त्रिपुर सुंदरी के दर्शन हेतु लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। माता के मयूर और कमलासिंन होने के कारण यह दिन में तीन रूपों में प्रगट होती हैं। प्रातः काल माता कुमारीका, मध्यान्ह में यौ्वना और सायं काल बेला में प्रौढ़ रूप में मां के दर्शन होते हैं। प्रथम दिवस यहां घट स्थापना के साथ-साथ अखंड ज्योति पूरे प्रांगण को प्रज्वलित करती है। जवारा उगाए जाते हैं। रतजगा भजन, कीर्तन, भक्तों की आस्था का महाकुंभ यहां देखने को मिलता है। अष्टमी, नवमी को हवन तथा कलश को ज्वारों सहित माही नदी में प्रवाहित कर माता को विदाई दी जाती है।
जीण माता।
अरावली की पहाड़ियों में विराजमान जीण माता शेखावाटी का प्रसिद्ध मंदिर है। जहां प्रतिवर्ष शारदीय और चैत्र नवरात्रि में मेले का आयोजन किया जाता है। सीकर के रेवासा गांव में अष्टभुजा मूर्ति स्थापित है। मान्यता है कि यह मंदिर भाई बहन को समर्पित है। जिसमें जीण और हर्ष के मनमुटाव होने पर एक दूसरे को मनाने के क्रम में तपस्या की गई और तपस्या के बाद ही इस मंदिर का निर्माण हुआ। राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान प्रथम के शासनकाल में हरड़ ने 1064 ईसवी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। जीण माता किसी की कुलदेवी तो किसी की इष्ट देवी है। नवमी को समापन होने वाले इस मेले में प्रथम दिन से ही लाखों श्रद्धालु और भक्त पहुंचते हैं। भोग, नैवेद्य के साथ-साथ घटस्थापना, जवारा बोएं जाते हैं जात, जडूले होते हैं। मन्नत मांगी जाती है। इस माता को मधुमक्खियों की देवी के नाम से भी जाना जाता है। अरावली की सुदूर पहाड़ियों पर एकांत में स्थित इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। जहां स्थानीय लोगों के साथ-साथ प्रवासी राजस्थानी भी नवरात्रि पर धोक देने पहुंचते हैं। माता को चुनरी चढ़ाई जाती हैं। भोग और नैवेद्य चढ़ाकर प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। मनोकामना पूरी होने पर कोई सवामणी तो कोई हवन अनुष्ठान करवाते है।
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