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भाजपा ने मनोवैज्ञानिक रणनीति से लड़ा चुनाव, प्रचार की गुगली में उलझा विपक्ष

– डॉक्टर उरुक्रम शर्मा

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के अंतिम चरण को मतदान बाकी है, इसके बाद 4 जून को मतगणना के साथ ही देश में अगली सरकार का चित्र सामने आ जाएगा। लोगों के कयास, राजनीतिक दलों के दावे और सट्टा बाजार की सचाई भी जगजाहिर हो जाएगी, साथ ही ज्योतिषियों की गणना के परिणाम भी आ जाएंगे। हर पार्टी के नेता ने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंख दी। कांग्रेस जो कभी पूरे देश में राज किया करती थी, वो विचार भिन्नता वाली पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। आम आदमी पार्टी कांग्रेस को गालियां देकर दिल्ली के सिंहासन पर बैठी, अब उसी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस ने वामपंथियों का साथ कभी नहीं लिया, मगर इस चुनाव में चुनावी मंच साझे किए। कहें तो साफ है कि सत्ता हासिल करने के लिए तमाम सिद्धांतों और मूल्यों को इस चुनाव में ताक पर रख दिया गया। बरसों तक एक दूसरे को गालियां देने वाले दल देश की बागडोर हासिल करने के लिए गठबंधन करके चुनाव लड़ रहे हैं। परिणाम क्या होते हैं, यह तो 4 जून को साफ हो जाएंगे, लेकिन कई यक्ष प्रश्न रह जाएंगे। जनता को आजादी के समय से बरसों तक जिस तरह से भुलावे में रखकर वोट हासिल किए जाते रहे थे, वो समय तो गुजर गया। जनता बहुत समझदार हो चुकी। वो अपने विवेक से वोट देती है, ना कि किसी के दबाव में या कहने से। जनता को बेवकूफ समझने की अब राजनीतिक दलों को गलती नहीं करनी चाहिए।

इस चुनाव में बदजुबानी की सभी सीमाओं को लांघा गया। तभी तो चुनाव आयोग को सभी राजनीतिक दलों को चेतावनी ही नहीं देनी पड़ी, बल्कि भविष्य में इस तरह की भाषा का इस्तेमाल नहीं करने के लिए भी पाबंद किया गया। इंडी गठबंधन ने जनता को बताने की कोशिश की भाजपा नीत गठबंधन सत्ता में आ गया तो संविधान खत्म हो जाएगा। सवाल यह है कि क्या जनता को बिल्कुल बेवकूफ समझ रखा है? संविधान खत्म करने का क्या प्रोसेस है, वो नहीं जानती है क्या? सुप्रीम कोर्ट ऐसा होने पर क्या चुप बैठा रहेगा? भाजपा पर जब यह आरोप लगने लगे तो प्रधानमंत्री मोदी को साफ करना पड़ा, संविधान को दुनिया की कोई ताकत खत्म नहीं कर सकती है, ना ही किसी को खत्म करने दूंगा, यह मोदी की गारंटी है। मोदी जो कहता है, वो करके दिखाता है। उसके लिए राष्ट्र प्रथम और जनता परिवार है। मोदी की गारंटी का तोड़ विपक्ष नहीं निकाल सका। विपक्षी गठबंधन ने भाजपा से डराने में कोई कसर नहीं छोड़ी तो भाजपा नेताओं ने हिन्दुओं और मुस्लिमों को बांटने जैसे मुद्दों को हवा देकर माहौल अपने पक्ष में करने का काम किया। राम मंदिर निर्माण का श्रेय लेकर सनातन की रक्षा सिर्फ भाजपा के जरिए होने की बात कही। राम मंदिर हिन्दुओं की आस्था का विषय है, जिसका निश्चित रूप से उत्तरी भारत के वोटों पर देखने का मिलेगा।

भाषा की मर्यादा की इस चुनाव में जमकर चीरहरण हुआ है। किसी भी पार्टी के किसी नेता ने इसमें कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। चाहे ममता बनर्जी हो या राहुल-प्रियंका गांधी। मोदी ने सीधे तौर पर किसी का नाम लिया, लेकिन संकेतों की भाषा से प्रहार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। राहुल और सपा प्रमुख अखिलेश यादव को पूरे चुनाव में शहजादा व युवराज बताते हुए तुष्टिकरण नीति का समर्थक बताया, इससे हिन्दुओं में यह घर कर गया कि यदि इंडी गठबंधन सरकार में आता है तो सनातन को सीधे तौर पर नुकसान होगा और तुष्टिकरण और जबरदस्त तरह से पांव पसार लेगा। मोदी ने कांग्रेस के घोषणा पत्र पर भी जमकर लपेटा। अपने भाषणों में यह बताने की कोशिश की यदि इंडी सरकार में आया तो संपत्ति का छीनकर ज्यादा बच्चों वालों में बांट दी जाएगी। उनका इशारा सीधे तौर पर मुसलमानों की तरफ था। जिसका कांग्रेस ने अपने स्तर पर पूरा स्पष्टीकरण देने की कोशिश की, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। भाजपा के धर्म आधारित दिए गए आरक्षण को समाप्त करने की बात कही, जिसे हिन्दू मतदाताओं, खासकर उत्तरी भारत के वोटर्स को जबरदस्त रास आई।

इस चुनाव में अहम यह रहा कि हर बार की तरह बाहुबलियों को सफाया हो गया। यानी हर पार्टी ने बाहुबलियों पर विश्वास करने से दूरी बनाई। धनबलियों का तो हर चुनाव की तरह इस बार भी हल्ला रहा। चुनाव आयोग की सख्ती के कारण नोटों का खुले आम बंटना या वोटर्स को प्रलोभन देने के खेलों को भी झटका लगा। आयोग ने मिलने वाली सभी शिकायतों का तुरंत निपटारा करने में कसर नहीं छोड़ी। कई मामलों में लोग अदालतों में गए, लेकिन अदालतों ने भी आयोग फैसले लेने में सक्षम होने के कारण दूरी बना ली।

इस चुनाव में छिटपुट घटनाओं को छोड़ दें तो चुनाव पूरी तरह शांतिपूर्ण रहा। हालांकि भयंकर गर्मी के कारण मतदान प्रतिशत पर खासा प्रभाव पड़ा। पश्चिम बंगाल को छोड़ दें तो बाकी सभी जगह मतदाताओं में उत्साह कम नजर आया। कम मतदान को लेकर सत्ता व विपक्ष अपने अपने कयास लगा रहे हैं। सबसे अहम यह भी है कि भाजपा ने इस चुनाव को मनोवैज्ञानिक रणनीति के तहत लड़ा। चुनाव के बहुत पहले से ही भाजपा ने इस बार 400 पार का नारा दिया। पार्टी का हर नेता और कार्यकर्ता सिर्फ 400 पार का नारा लगाने लगा। विपक्ष इसी में उलझ कर रह गया। कहने लगा, 400 पार आ गए तो यह पूरी तरह तानाशाही करके चुनाव देश से हमेशा के लिए खत्म कर देंगे। यही भाजपा की जीत हो गई। विपक्ष यह नहीं कह रहा था कि वो पूर्ण बहुमत से सरकार बनाएंगे, बल्कि 400 पार का नारा काल्पनिक बताने लगे। यानि भाजपा ने पूरे चुनाव विपक्ष को उलझा कर रखा।

चुनाव के पांच चरण के चुनाव के बाद भाजपा वाले प्रचार करने लगे थे कि 300 सीटों को आंकड़ा तो भाजपा ने पार कर लिया, अब सिर्फ 100 सीटें जीतनी है। छठें और सातवें चरण की 114 सीटों पर चुनाव होना है, इसके होने के साथ ही 400 सीटों को पार कर लेंगे। राजनीतिक रणनीतिकार व विश्लेषक प्रशांत किशोर ने भी साफ किया है कि इस बार भी मोदी की सरकार पूर्ण बहुमत से बनेगी, या तो पिछली बार जितनी सीटें आएगी, या उसमें कुछ इजाफा हो जाएगा। बहरहाल देखने वाली बात यह है कि किसके दावों पर लगेगी मुहर और किसके दावों के खुलेगी पोल…4 जून का है इंतजार।

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