-दोनों ही दल चारों राज्यों में बिना मुख्यमंत्री की घोषणा के लड़ेंगे चुनाव
-भाजपा मोदी तो कांग्रेस राहुल को लेकर उतरेगी मैदान में
-राजस्थान, छत्तीसगढ़ बचाना कांग्रेस, मध्यप्रदेश बचाना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती
डॉ. उरुक्रम शर्मा
इस साल के अंत में चार राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए करो या मरो का चुनाव है। कहें तो यह कि लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में चुनाव होने हैं। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। मध्यप्रदेश में भाजपा और तेलंगाना में क्षेत्रीय दल का कब्जा है। कांग्रेस राजस्थान और छत्तीसगढ़ को बचाने और मध्यप्रदेश व तेलंगाना को हथियाने के लिए पूरा जोर लगा रही है। सत्ताधारी दोनों ही राज्यों में मुफ्त की घोषणाओं के क्रियान्वयन के लिए सरकार ने खजाना खोल दिया है। कर्मचारियों को खुश करने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है। लोगों को मुफ्त की बिजली, राइट टू हैल्थ, स्मार्ट फोन, पेंशन की राशि बढ़ाने, मुफ्त की सरकारी बस यात्रा, सीनियर सिटीजन्स को मुफ्त तीर्थ यात्रा आदि आदि के लिए पट खोल दिए हैं। कैसे भी सरकार बनानी है, बस यही एक मकसद है। इसके लिए बाकायदा जतिगत वोट बैंक को थामने के लिए हर जाति के कल्याण बोर्ड बनाकर उन्हें खुश किया जा रहा है। जातियों के लोक देवताओं के अवतरण दिवस पर छुट्टी घोषित की जा रही है।
राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पांच साल में सरकार बदलने के मिथक को तोड़ने के लिए भी कांग्रेस ने कमर कस रखी है। मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार भी इसी तरह की मुफ्त की योजनाओं से मतदाताओं को मोहने में जुटी है। मुफ्त और लोकलुभावनी योजनाओं से लोगों को अपने समर्थन में करने के भले ही प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन मतदाता को मूर्ख समझने की ये गलती कर रहे हैं। वो जानता है कि साढ़े चार साल के शासन में उस पर क्या बीती है, अब सरकार जो कर रही है, उसका मकसद क्या है। इन सब प्रयासों से कितना फर्क पड़ता है यह तो परिणाम बताएंगे।
फिलहाल धड़ों में बंटी भाजपा-कांग्रेस को एक करना सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। मध्यप्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोनों ही दौड़ लगा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में बघेल और सिंह देव टकरा रहे हैं। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट में 36 का आंकड़ा है। तीनों ही राज्यों में कांग्रेस हाईकमान मिलजुल कर सत्ता बनाने के लिए राजीनामे के प्रयास कर रहे हैं, लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षा के आगे कितना सफल होते हैं, यह तो समय ही बताएगा
भाजपा के लिए यह विधानसभा चुनाव पूरी तरह से करो या मरो के समान है। भाजपा को अगले साल लोकसभा चुनाव जीतकर फिर सरकार बनानी की जिद है तो कांग्रेस इसके मंसूबों पर पानी फेरने के लिए कृत संकल्प है। कांग्रेस से ज्यादा भाजपा के सामने अपने ही लोगों की चुनौती बनी हुई है। राजस्थान में पार्टी दो खेमों में बंटी हुई है। एक खेमा जननेता वसुंधरा राजे के पक्ष में खड़ा है तो उन्हें रोकने के लिए प्रतिपक्ष के नेता राजेन्द्र राठौड़, उपनेता सतीश पूनिया, केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत और अर्जुनराम मेघवाल पूरी ताकत से विरोध कर रहे हैं। इन्होंने संघ के नेताओं के कंधे पर बंदूक रखी हुई है। केन्द्रीय नेतृत्व जानता है कि सबको साथ लिए बिना ना तो राजस्थान में सरकार बनाई जा सकती है, ना ही छत्तीसगढ़ में और मध्यप्रदेश की सरकार बचाना और भी मुश्किल है। तेलंगाना को लेकर भाजपा इतनी गंभीर नजर नहीं आ रही है, किन्तु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वहां सभाएं करके त्रिपुरा की तरह सरकार बनाने की प्लानिंग है।
विधानसभा चुनाव में भाजपा फिर नरेन्द्र मोदी के चेहरे को सामने रखकर उतरने का ऐलान कर चुकी है। जबकि कुछ समय पहले ही स्थानीय कद्दावर जननेताओं को दरकिनार करके कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश का चुनाव लड़कर दोनों राज्यों से सत्ता खो चुके हैं। इस बार भी पार्टी ने मोदी के चेहरे पर ही दांव लगाने का जो फैसला किया है, उसके परिणाम प्रतिकूल रहे तो अगले साल का लोकसभा चुनाव भाजपा के लिए भारी पड़ जाएगा। वैसे भी धीरे-धीरे भाजपा शासित राज्यों की संख्या में कमी आ रही है।
कांग्रेस में राहुल गांधी ने खुद को साइड करके मल्लिकार्जुन खड़गे को जो कमान सौंपी है, उसके परिणाम दो राज्यों में पूर्ण बहुमत से सत्ता हासिल होना है। राहुल गांधी के मानहानि प्रकरण में केन्द्र की भाजपा सरकार की जल्दबाजी ने उनका कद ही नहीं बढ़ाया बल्कि सोए हुए कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार कर दिया। उधर राहुल गांधी अब परिपक्वता के साथ आगे बढ़ रहे हैं और पूरा फोकस हर राज्य में पार्टी को एकजुट करके चुनाव मैदान में उतारने का है।
दोनों ही पार्टियों ने अब तक कई सर्वे करवाएं हैं, जिनमें मौजूदा आधे से ज्यादा विधायकों के विरोध में लोगों ने पक्ष रखा है। इन्हें बदल कर दूसरे को वोट देना और बगावत को थामने कोई आसान काम नहीं होगा। भाजपा ने राजस्थान में वसुंधरा राजे को आगे करके चुनाव नहीं लड़ा तो बड़ा नुकसान होने के पूरे आसार हैं। अकेले वो ही अशोक गहलोत से मुकाबला कर सकती है। बाकी वसुंधरा के विरोधी खेमे के नेताओं का अपने निर्वाचन क्षेत्र से बाहर किसी उम्मीदवार को जिताकर लाने का दम नहीं है। पिछले साढ़े चार में हुए विधानसभा उपचुनावों में जिस तरह भाजपा की किरकिरी हुई है, वो इसका प्रमाण हैं। इन चुनावों में वसुंधरा राजे को पूरी तरह किनारा किया गया था। हालांकि पिछले दिनों दोनों पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने विरोधियों को सख्त हिदायत दी है कि किसी के खिलाफ कुछ नहीं बोलें ना ही मुखालफत करें। चुनाव पार्टी लड़ रही है, मुख्यमंत्री का चयन चुनाव परिणाम आने के बाद किया जाएगा।
बहरहाल चार राज्यों के चुनाव पूरी तरह से कांग्रेस और भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है। राहुल गांधी और नरेन्द्र मोदी की आगे की राजनीति की राह को प्रशस्त करेंगे। कांग्रेस संगठनात्क रूप से बूथ लेवल तक इतनी मजबूत नहीं नजर आ रही है, जितनी कसरत भाजपा ने पूरी कर ली है। परदे के पीछे से राष्ट्रीय स्वयंसेवक जिस तरह से काम करते हैं, उसका तोड़ कांग्रेस को निकालना होगा।
Healthy Liver Tips : जयपुर। लिवर शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, जो हमारे शरीर…
National Herald Case : केंद्र सरकार द्वारा राज्यसभा सांसद सोनिया गांधी व नेता प्रतिपक्ष राहुल…
Hanuman Jayanti : राहोली पंचायत के महात्मा गांधी राजकीय विद्यालय में हनुमान जयंती के अवसर…
Jaipur Bulldozer Action: जयपुर विकास प्राधिकरण की ओर से 9 अप्रैल को अतिक्रमण के खिलाफ…
Starting a business usually means spending money on a shop, hiring staff, buying stock, and…
PESA Act : जयपुर। जनजातियों की रक्षा करने वाला विश्व के सबसे बड़े संगठन अखिल…