कावड़ यात्रा। सावन का पवित्र महिना शुरू होने के साथ ही चारों और बम-बम भोले के जयकारो की आवाज सुनाई देने लगी हैं। सावन का महीना शुरू होने के साथ ही कावड़ियें भी कावड़ लेकर यात्रा शुरू कर चुके हैं। शिवभक्त भगवान शिव का अभिषेक करने के लिए यात्रा आंरम्भ कर चुके हैं। कावड़ यात्रा का जगह-जगह भव्य स्वागत भी किया जा रहा हैं। आखिर कैसे निकाली जाती हैं कावड़ यात्रा।
कांधे पर कावड़ और शरिर पर गेरूआ वस्त्र धारण कर कमर में अंगोछा ओर सिर पर पठका बांध कर कावड़िये भगवान की भक्ती में मगन होकर नंगे पैर चलते जाते हैं। पूरी यात्रा में बम-बम भोले व हर-हर महादेव के जयकारों से आशमान गूंज उठता हैं।
दो मटकियों में पवित्र नदियों का जल भरा जाता है और उसके बाद में उन मटकियों को आपस में बंधी हुई बासं की लकड़ीयों से बांध दिया जाश्ता हैं। जिसके बाद यह तराजू की तरह लगने लगती हैं। इन मटकियों में जल भरने के बाद कंधे पर रखकर लाया जाता हैं। इन मटकियों के जल से भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता हैं।
भगवान भोले के भक्त कावड़ लेकर पैदल यात्रा से अपना सफर तय करते हैं। इस यात्रा को उद्देशय व्यक्ति के जीवन में सरलता आकर उसकी संपूर्ण कामनाओं की पूर्ति होती हैं। कावड़ यात्रा के दौरान कड़े नियमों का पालन भी किया जाता हैं। यात्रा के पश्चात भगवान भोले का जलाभिषेक कर आशिर्वाद लिया जाता हैं।
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