हिमगिरी के पाषाणों में,
स्नेहसिक्त हृदय के स्पन्दन में।
मेरे प्रियवर आप,
मयूरकंठी मिष्टभाषी मधुऋतु बन कर,
कितने मृदु भाव प्रतिबिम्बित।
बयाबान मन की मरुस्थली में,
बन अश्रु-बिन्द मृगनयनी इन नयनों में।
मेरे प्रियवर आप,
गंगा की निरंतर लहर से पवित्र बनकर,
कितने पावन भाव प्रतिध्वनित।
अँधेरी इस जीवन की गलियों में,
मूक हृदय की सुप्त वेदना में।
मेरे प्रियवर आप,
गुणवान, मुस्कान, प्रकाशवान बनकर,
कितने शुभ्र ज्योत्सना से प्रज्ज्वलित।
हिमानी वशिष्ठ
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