IVF तकनीक से गर्भधारण करने की शुरुआत 1978 में हुई थी।

इस तकनीक में परखनली के जरिए भ्रूण का निर्माण होता है।

वैज्ञानिक एक परखनली में अंडाणु और शुक्राणु को निषेचित करते हैं।

इसी से एक भ्रूण बनता है जिसे गर्भाशय में रोपित किया जाता है।

जो महिलाएं ट्यूब संक्रमण या अन्य कारणों से मां नहीं बन सकती हैं।

उनके लिए यह तकनीक एक वरदानस्वरूप ही है।

लैब से महिलाओं के शरीर से अंडे निकाल कर सैंपल तैयार होता है।

इस अंडे को पुरुष के शरीर से लिए गए स्पर्म को मिलाया जाता है।

इन दोनों के मिलने से लैब में ही एक भ्रूण का निर्माण होता है।

इस भ्रूण को गर्भाशय में रखा जाता है ताकि बाद में स्वस्थ बालक जन्म ले सकें।