Cloud Seeding Kya Hai: खाड़ी के रेगिस्तान क्षेत्र में बसा दुबई में आई बाढ़ की तस्वीरें और वीडियो जमकर वायरल हो रहे हैं। वीडियोज में दिखाया जा रहा है कि किस तरह कभी पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसने वाले देश में बाढ़ ने हालात खराब कर दिए। हर जगह पानी ही पानी दिख रहा है, कुछ लोग इसके लिए जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ क्लाउड सीडिंग को जिम्मेदार बता रहे हैं।
क्लाउड सीडिंग वास्तव में एक ऐसी टेक्नीक है जिसके जरिए कहीं पर भी आर्टफिशियल वर्षा करवाई जा सकती है। एक तरह से कह सकते हैं कि वातावरण में मौजूद पानी को ही वर्षा के रूप में बरसने के लिए मजबूर किया जाता है। वैज्ञानिकों ने क्लाउड सीडिंग तकनीक को विश्व के सूखाग्रस्त इलाकों में बारिश करवाने के लिए ईजाद किया था। खाड़ी देशों सहित चीन व अन्य विकसित देश क्लाउड सीडिंग का प्रयोग अपने यहां बारिश करवा सूखा दूर करने के लिए करते हैं।
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वातावरण में हवा के साथ-साथ जलवाष्प भी होती है। जब जलवाष्प के कण ज्यादा भारी हो जाते हैं, तब यही कण बारिश के रूप में बरसते हैं। कृत्रिम बारिश करवाने के लिए इसी फैक्ट को काम लिया जाता है। वैज्ञानिक आसमान में एक निश्चित ऊंचाई पर जाकर सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस और साधारण नमक को मिलाकर बादलों में छोड़ते हैं। इससे जलवाष्प कण भारी हो जाते हैं और बारिश के रूप में बरसने लगते हैं। इसे ही क्लाउड सीडिंग कहा जाता है।
इस तकनीक का प्रयोग करने के लिए जरूरी है कि आसमान में न्यूनतम 40 फीसदी बादल हो। इन बादलों में भी थोड़ा बहुत पानी आना जरूरी है। यदि बादलों की संख्या कम होगी या पानी नहीं होगा तो क्लाउड सीडिंग टेक्नीक काम नहीं करेगी। यदि किसी मौसमी घटना जैसे चक्रवात, मौसमी विक्षोभ के चलते वातावरण में ह्यूमिडिटी हो तो बारिश करवाना आसान हो जाता है।
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इस तकनीक का प्रयोग करने के लिए पहले मौसम की फिजिकल और केमिकल जांच की जाती है। जांचा जाता है कि वातावरण में पॉल्यूशन और एयरोसोल कितने हैं, इसके बाद ही बादल बनाने के प्रोसेस को आगे बढ़ाया जाता है। यहां यह भी ध्यान रखने की चीज है कि क्लाउड सीडिंग में यूज होने वाले केमिकल्स को लेकर वैज्ञानिक कई बार नेगेटिव आशंकाएं जता चुके हैं। क्लाउड सीडिंग में गड़बड़ी बाढ़ जैसी घटनाओं को भी जन्म दे सकती है।
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