जयपुर। Indian Crows Killing : कुवैत में भारतीय मजदूरों की मौत के बाद अब कौवों की शामत आ चुकी है। सरकार ने 10 लाख भारतीय कौवों को मौत के घाट उतारने का आदेश जारी किया है। दरअसल, यह आदेश केन्या की सरकार ने जारी किया है जिसके तहत 2024 के अंत तक भारतीय मूल के 10 लाख कौवों को खत्म किया जा रहा है। इसको लेकर केन्या वन्यजीव सेवा (KWS) ने कहा है कि भारतीय कौवे आक्रामक विदेशी पक्षी हैं जो दशकों से जनता के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं। उनकी वजह से स्थानीय पक्षियों की आबादी पर काफी असर पड़ रहा है।
केन्या में वन्यजीव और सामुदायिक सेवा के निदेशक चार्ल्स मुस्योकी ने कहा कि केन्याई तटीय क्षेत्र में होटल व्यवसायियों और किसानों द्वारा भारतीय कौवों को लेकर सार्वजनिक आक्रोश जताया है जिसके बाद यह एक्शन लिया जा रहा है। केडब्ल्यूएस के मुताबिक उनकी मैला ढोने की आक्रामकता को देखते हुए भारतीय घरेलू कौवे खतरा बन गए हैं, जो लुप्तप्राय स्थानीय पक्षी प्रजातियों का शिकार कर रहे हैं।
रोचा केन्या के संरक्षणवादी और पक्षी विशेषज्ञ कोलिन जैक्सन ने कहा है कि भारतीय प्रजाति के कौवों ने केन्याई तट पर छोटे देशी पक्षियों की आबादी को उनके घोंसलों को नष्ट करके और उनके अंडों और चूजों को खाकर काफी हद तक कम कर दिया है। आपको बता दें कि रोचा संरक्षण संगठनों का एक वैश्विक परिवार है जो जैव विविधता के नुकसान के विश्वव्यापी संकट के जवाब में समुदाय-आधारित संरक्षण परियोजनाओं को पूरा करने के लिए मिलकर काम कर रहा है।
घरेलू कौवा को जिसे भारतीय कौवा, ग्रे-नेक्ड कौवा, सीलोन कौवा और कोलंबो कौवा जैसे कई अन्य नामों से भी जाना जाता है। ये कौवे भारत और एशिया के अन्य हिस्सों से वहां गए हैं और अब ये शिपिंग गतिविधियों की सहायता से दुनिया के कई हिस्सों में फैल गए हैं।
माना जाता है कि भारतीय कौवे 1940 के दशक के आसपास पूर्वी अफ्रीका में आए थे और उन्होंने न केवल केन्या में बल्कि पूरे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण आक्रामक कार्य किए है। संरक्षणवादियों को डर है कि आक्रामक कौवा आबादी संरक्षित राष्ट्रीय भंडार जैसे विशेष आवासों पर आक्रमण कर सकती है, जिससे सोकोक स्कॉप्स उल्लू (ओटस अरनेई) जैसी दुर्लभ, अनूठी या विलुप्त हो रही प्रजातियों की अंतिम प्रजातियों को खत्म करने जैसा अपरिवर्तनीय कहर बरपा सकता है।
केन्या में प्रवासी धन प्रेषण और कृषि निर्यात के बाद पर्यटन उद्योग विदेशी मुद्रा आय का तीसरा सबसे बड़ा स्त्रोत है। वहां के होटल व्यवसायियों ने शिकायत की है कि भारतीय कौवे पर्यटन और होटल उद्योग के लिए काफी असुविधा पैदा करते हैं, जिससे पर्यटकों को उनके भोजन का आनंद लेने में बाधा उत्पन्न होती है। किसानों ने भी इन कौवों के प्रसार के बारे में चिंता व्यक्त की है।
पीसीपीबी ने आक्रामक पक्षी प्रजातियों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए जहर को सबसे कारगर तरीका बताया है। अकेले केन्याई तट क्षेत्र में उनकी बढ़ती आबादी का अनुमान 10 लाख बताया गया है। यानि इन कौवों को अब जहर देकर मारा जाएगा।
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