जयपुर। भारत में चावल और गेहूं समेत अन्य फसलों की कमी आने वाली है। इसका खुलासा मोदी सरकार ने संसद में किया है। जलवायु परिवर्तन भारत समेत पूरी दुनिया के सामने एक गंभीर समस्या बनकर सामने आई है। इसका असर अब फसलों पर भी देखने को मिल रहा है। भारतीय संसद में जलवायु परिवर्तन से फसलों पर होने वाले प्रभाव का बड़ा मुद्दा उठा है। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने लोकसभा में कहा है जलवायु परिवर्तन से चावल, गेहूं और मक्का कुछ ऐसी फसलें हैं जो सबसे अधिक प्रभावित होती हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानि ICAR, केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय और भारत सरकार ने जलवायु परिवर्तन प्रभाव को लेकर रिसर्च की है। अश्विनी चौबे के अनुसार इस रिसर्च में मानसून पैटर्न में बदलाव और कृषि क्षेत्र पर उनके प्रभाव को देखा गया है। यह विश्लेषण नेशनल इनोवेशन इन क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर यानि NICRA परियोजना के तहत किया गया था।
यह भी इस रिसर्च में सामने आया है कि अगर जलवायु परिवर्तन को लेकर सही कदम नहीं उठाए गए तो 2050 तक वर्षा पर आधारित चावल की पैदावार में 2 से 20 फीसदी की कमी आएगी। जबकि 2080 तक स्थिति और गंभीर होगी और वर्षा आधारित चावल की पैदावार में 10 से 47 फीसदी तक की कमी आएगी। जलवायु परिवर्तन की वजह से गेहूं की पैदावार 2050 में 8.4 से 19.3 प्रतिशत और 2080 तक 18.9-41 प्रतिशत की कमी आएगी। इसके अलावा खरीफ मक्का की पैदावार में 2050 में 10-19 प्रतिशत और 2080 तक 20 प्रतिशत से अधिक कम दर्ज की जा सकती है।
Climate Risk Index 2021 के अनुसार भारत जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित 10 देशों में शुमार है। बदलती जलवायु परिस्थितियों से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में कृषि पहले नंबर वन है। ऐसा इसलिए क्योंकि खेती गर्मी, बारिश और सर्दियों के आधार पर की जाती है। इस वजह से जलवायु परिवर्तन से बारिश, गर्मी और ठंड ही ठीक से नहीं रहेंगी तो किसानों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी होगी।
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