Shawwal ke Roze : रमजान का मुबारक महीना गुज़र चुका है। ईद मना ली गई है। अब शव्वाल का महीना शुरु हो चुका है। ईद का दिन शव्वाल की पहली तारीख होती है। ये हिजरी कैलेंडर का दसवा महीना होता है। रमजान के तीस रोजो के बाद शव्वाल में भी 6 रोजे रखने का बहुत बड़ा सवाब है। हम आपको बताएंगे कि शव्वाल के 6 रोजे (Shawwal ke Roze) कब रखने चाहिए और इनका कितना ज्यादा सवाब मिलता है। हालांकि कई लोग अपने कज़ा रोजे को भी इन 6 रोजो से जोड़ देते है जो कि गलत है।
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ईद का चांद दिखने पर जो महीना आता है उसे शव्वाल कहते है। शव्वाल के 6 रोज़े मुस्तहब हैं। यानी आप ईद के बाद इस महीने में कभी भी 6 रोजे रख सकते हैं। लेकिन ये रोजे रखना फर्ज नहीं है। मतलब जो ये 6 रोजे रखेगा उसे सवाब है जो नहीं रखेगा उसे गुनाह नहीं है। महीने में कभी भी आप ये 6 रोजे अलग अलग भी रख सकते हैं।
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है कि “जो शख्स रमज़ान के रोज़े रखे फिर उस के बाद 6 रोज़े शव्वाल के रखे तो ये अमल पूरे साल (रोज़े रखने) की तरह है”।
हदीस (सही’ह मुस्लिम : 1164)
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शव्वाल के 6 रोजे रखकर आपको पूरे साल रोजे रखने का सवाब मिल सकता है। क्योंकि रमजान के तीस रोजे का दस गुना सवाब मिलता है। यानी 30 दिन का सवाब 300 दिन के बराबर होता है। और शव्वाल के 6 दिन का मतलब 60 दिन के रोजे रखने का सवाब। यानी आपको रमजान के तीस और ये 6 रोजे रखकर पूरे साल रोजे रखने का सवाब मिल जाएगा।
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