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इस वैज्ञानिक ने ढूंढा मुर्दे को जिंदा करने का तरीका, अब नहीं होगी मौत और बीमारी

Science News in Hindi: इटली का एक वैज्ञानिक मर चुके लोगों को जिंदा करने की तकनीक पर काम कर रहा है। इस काम में उसने कुछ हद तक सफलता भी पा ली है। यह वैज्ञानिक जिंदा लोगों के मस्तिष्क (गर्दन से ऊपर के हिस्से) को मृतक शरीरों पर लगाने का प्रयास कर रहा है।

इटेलियन न्यूरोसर्जन सर्जिओ कनावेरो का सपना है कि वह इंसानों में हैड ट्रांसप्लांट का काम करें। वह कई जानवरों में ऐसा सफलतापूर्वक कर चुका है लेकिन अभी तक इंसानों पर उसने यह प्रयोग नहीं किया है। इसके लिए उसे न तो वॉलेंटियर मिल पाया है और न ही सरकार से अनुमति। यह एक तरह से जिंदा आदमी को मारने जैसा प्रयास है जो हत्या का ही दूसरा रूप माना जा सकता है।

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एक आदमी तैयार भी था, ऐन वक्त पर इरादा बदल दिया

डॉक्टर सर्जिओ को अपने इस अद्भुत प्रयोग के लिए एक वॉलेंटियर भी मिल गया था जो अपनी जान दांव पर लगाने को तैयार था। रशियन कंप्यूटर साइंटिस्ट वालेरी स्पिरिडोनोव एक बहुत ही दुर्लभ मसल वेस्टिंग बीमारी से जूझ रहे हैं। इस बीमारी के चलते उनका शरीर किसी लकवाग्रस्त बीमार की तरह अशक्त हो चुका है। वह चाहते थे कि उन्हें नया शरीर मिल जाए। इसलिए उन्होंने अपने ऊपर इस एक्सपेरिमेंट को करने की अनुमति दे दी थी।

परन्तु एक्सपेरिमेंट शुरू होने के ठीक पहले वालेरी की लाइफ में दो बड़े बदलाव आए। पहला, उन्हें किसी से प्यार हो गया और उन्होंने शादी कर ली। दूसरा उनकी बीमारी आश्चर्यजनक रूप से खुद ही बढ़ना रुक गई और उन्होंने अपनी बीमारी को स्वीकार करते हुए इसके साथ रहना सीख लिया।

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मुर्दों पर कर चुके हैं परीक्षण

डॉक्टर सर्जिओ अपने इस एक्सपेरिमेंट को दो मुर्दा शरीरों पर सफलतापूर्वक कर चुके हैं। इस प्रयोग में उन्होंने उन दोनों शवों के सिर को काट कर एक-दूसरे के धड़ पर जोड़ दिया था। लेकिन जीवित प्राणी में अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है।

डॉक्टर रोबिन फ्रांसिस ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि ऐसा होना संभव है लेकिन अभी तक मानव सभ्यता के पास वह तकनीक नहीं आई है जो इतने बड़े और जटिल ऑपरेशन को सफलतापूर्वकर पूरा कर सकें। इस तरह के ऑपरेशन में मेडिकल हिस्ट्री के इतिहास की पूरी नॉलेज को यूज करना होगा, तभी ऐसा हो पाएगा।

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जानवरों पर सफलतापूर्वक हो चुका है यह एक्सपेरिमेंट

1950 के दशक में रुसी वैज्ञानिक व्लादिमीर डेमिखोव ने एक जीवित कुत्ते के धड़ पर दूसरे कुत्ते का सिर काट कर लगाया था। इस तरह वह दो मुंह वाला कुत्ता बन गया। यह प्रयोग कई कुत्तों पर किए गए। अधिकतर कुत्ते ऑपरेशन के बाद एक से दो हफ्तों तक जीवित भी रहे।

अमरीकी न्यूरोसर्जन रॉबर्ट जे. व्हाइट ने इसी तरह का प्रयोग बंदरों पर किया था। उसने करीब 30 बंदरों पर यह प्रयोग किया और उनके से कई बंदर आठ दिन से लेकर कई हफ्तों तक जीवित रहे। ये सभी पूरे होशोहवाश में थे और शरीर पर उनका कंट्रोल भी बना हुआ था। इटेलियन न्यूरोसर्जन डॉ. कानवेरो ने भी एक चौंकाने वाला खुलासा करते हुए दावा किया था कि उन्होंने एक बंदर की रीड़ की हड्डी को काट कर वापस जोड़ने का प्रयोग किया था। बंदर ऑपरेशन के बाद भी पूरी तरह नॉर्मल लाइफ जी रहा था।

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