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  • Dec, Sat 02, 2023
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जयपुर। 26 जनवरी 1950 का वो दिन जब भारत गणतंत्र बना तब समारोह में बिस्मिल्लाह खान की शहनाई गूंजी थी और पाकिस्तान के होश उड़ गए थे, क्योंकि जैसे दूध गर्म किया गया तो मलाई भारत में रह गई और बिना पोषक तत्वों वाला दूध पाकिस्तान चला गया था। तब से लेकर आज तक बिस्मिल्लाह की साज की धुन हिंदुस्तान की हवाओं में है। आपको बता दें कि बिस्मिल्लाह की एकमात्र हिंदू चेली बागेश्वरी कमर आज भी उनकी इस कला को लेकर आगे बढ़ रही हैं।

11 वर्ष की उम्र से ली शहनाई की तालीम
बागेश्वरी का कहना है कि जब वो छह-सात साल की थी तब मां चंद्रावती कमर से कहती कि उनके लिए भी शहनाई बना दें। जब पड़ोस के बच्चे गुड्‌डे-गुड़ियों के साथ खेलते थे तब उनकोा शहनाई लुभाती थी। सुबह-शाम घर में पिता और उनके शिष्यों को अभ्यास करता देखती तो मेरा बहुत मन करता। एक दिन मां ने साज बनाकर दे ही दिया। मां सख्त निर्देश देतीं कि शहनाई तभी बजाना जब पापा घर पर न हों।

पिताजी ने बताई बात
1979 में जब उस्ताद बिस्मिल्लाह खान दिल्ली आए और पापा ने उन्हें बागेश्वरी द्वारा शहनाई बजाने की बात बताई तो वो भी अचरज में पड़ गए। उन्होंने भी शहनाई बजाने का आशीर्वाद दिया। बागेश्वरी देवी ने 17 साल की उम्र में स्टेज पर पहला परफॉर्मेंस दिया था। धीरे-धीरे उनके शहनाई वादन में मैच्योरिटी आती गई। उन्होंने देश के साथ ही विदेशों में भी उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।

घर में संगीत का माहौल
पुरानी दिल्ली के सदर बाजार एरिया में ईदगाह रोड पर चंद्र कुटीर के आसपास के पूरे इलाके में तब शहनाई से ही लोगों के दिन की शुरुआत होती थी जिसे मंगल ध्वनि कहते थे। बागेश्वरी के घर में तीन पीढ़ियों से मेरे घर में संगीत का माहौल रहा।

गंडा बांधना गुरु-शिष्य परंपरा
गंडा बांधना गुरु-शिष्य से संबंधित एक विशेष रस्म होती है। गुरु शिष्य की बांह पर एक धागा बांध देते हैं जिसे गंडा बांधना कहते हैं। जब शिष्य शिक्षा प्राप्त कर लेता है तो गुरु रीति अनुसार अपने घराने का गंडा उसके हाथों में बांध देते हैं। बागेश्वरी देवी को गंडा बांधते उस्ताद बिस्मिल्लाह खान।

लड़कियां सबकुछ कर सकती हैं
जब लड़कियां सितार, सरोद, वायलिन, तबला, पखावज, बांसुरी जैसे साज लड़कियां बजा सकती हैं तो शहनाई भी बजा सकती हैं। इसी सोच के साथ बागेश्वरी आगे बढ़ी। अब ये काम मर्दों का है लड़कियां नहीं कर सकतीं, वो जमाना चला गया। लड़कियों में लड़कों की तरह ही समान क्षमता है उन्होंने प्रूव करके दिखाया है। फाइटर प्लेन उड़ाने से लेकर आर्मी-पुलिस में भर्ती होने, साइंटिस्ट बनने, किसी भी तरह के खेल में अपना सर्वोच्च देने में लड़कियों ने बाजी मारी है। लड़कियां सब कुछ कर सकती हैं ये भरोसा हमेशा बनाएं रखें।

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