डाकू अंगुलिमाल की घटना
एक बार भगवान बुद्ध किसी गांव से गुजर रहे थे। गुजरते हुए वे एक जंगल में प्रवेश करने लगे। तभी किसी व्यक्ति ने उन्हें पीछे से टोका, ठहरो ,तुम आगे नहीं जा सकते। तुम्हें पता नहीं इस जंगल में मेरा राज चलता है। बुद्ध फिर भी नहीं रूके और चलते रहे।
तब डाकू अंगुलिमाल को गुस्सा आया उसने कहा ठहरो वरना मैं तुम्हें मार डालूंगा। तुम मुझे जानते नहीं मैंने अभी तक 99 लोगों को मौत के घाट उतार दिया।
गौतम बुद्ध मुस्कुराए और बोले ठहरना तो तुम्हें चाहिए मुझे नहीं।
मैं एक शर्त पर ठहर जाऊंगा अंगुलिमाल की बात सुन गौतम बुद्ध मुस्कुराए। अंगुलीमार ने जब गौतम बुद्ध के ओजस्वी व्यक्तित्व को देखा तो वह अचंभित हो गया। उसने पूछा बोलिए क्या?
बुद्ध ने कहा सामने जो वृक्ष है। तुम उसके 10 पत्ते तोड़ कर ले आओ। अंगुलीमार ने कहा,बस इतना सा काम। वह तुरंत 10 पत्ते तोड़कर ले आया।
अब गौतम बुद्ध ने कहा। इन 10 पतो को पुनः जाकर वृक्ष पर लगा दो।
अंगुलिमाल बोला यह कैसे संभव है? क्या साधु कभी तोड़े गए पत्ते भी पेड़ पर वापस लगते हैं?
बुद्ध ने कहा मैं तुम्हें वही तो समझाने की कोशिश कर रहा हूं। जब तुम एक वृक्ष के पत्ते तोड़कर फिर नहीं लगा सकते। तो फिर तुम्हें लोगों की अंगुलियां काटने का क्या हक बनता है? क्या तुम उन्हें फिर से जोड़ सकते हो?
अब अंगुलिमाल का हृदय परिवर्तन हो गया और उसने 99 लोगों की अंगुलियों की माला त्याग कर भगवान बुद्ध की शरण ले ली।
क्रूर उंगली मार अब एक शांत स्वभाव का साधु बन चुका था ऐसा था भगवान बुद्ध का व्यक्तित्व।
वे एक ऐसे चिकित्सक के रूप में पहचाने जाते थे। जिन्होंने रोग के कारण के साथ, उनका समाधान भी जनसाधारण को दिया। तभी वे एशिया के प्रकाश पुंज कहलाए। दुखियों का दुख दूर करने वाले मानसिक दुखों के महान चिकित्सक बुद्ध, ने जनसाधारण की जिज्ञासाओं को शांत करते हुए अनेक प्रश्नों का उत्तर दिया।
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि प्रत्येक व्यक्ति के अंतस में सृजनात्मक सामर्थ्य की असीम संभावनाएं है। बस उसे अप्पो दीपो भव बनना है।