नाम है *“पैलेस ऑन व्हील्स”* — एक ऐसा महल जो पहियों पर चलता है। राजस्थान की पहचान, भारत का गौरव और राजसी सपनों की यात्रा का प्रतीक। आज हम आपको बताते हैं, इस लग्जरी ट्रेन की 43 साल की दिलचस्प यात्रा कथा।इस कहानी की शुरुआत होती है अंग्रेज़ों के ज़माने में… जब रजवाड़ों का राज था और हर राजा की अपनी शाही बोगी होती थी। इन बोगियों पर उनकी रियासत का नाम लिखा होता — *अलवर हिज़ हाइनेस, बीकानेर हिज़ हाइनेस, उदयपुर हिज़ हाइनेस…* इन कोचों की शान-ओ-शौकत देखते ही बनती थी — सोने-चांदी की जड़ाई, झरोखे, मखमली सोफे, और भीतर का माहौल बिल्कुल किसी महल जैसा। आज़ादी के बाद ये शाही कोच रेलवे के यार्ड में खड़े-खड़े इतिहास बन गए। लेकिन फिर आया एक ऐसा आइडिया जिसने राजस्थान के पर्यटन को हमेशा के लिए बदल दिया। राजस्थान पर्यटन विकास निगम यानी *आरटीडीसी* के अधिकारियों ने सोचा — “क्यों न इन शाही डिब्बों को मिलाकर एक हेरिटेज ट्रेन बनाई जाए, जिससे विदेशी पर्यटक राजस्थान की संस्कृति का असली अनुभव ले सकें?” भारतीय रेलवे को ये विचार पसंद आया। फिर रियासतों से बातचीत हुई, पुराने कोच खरीदे गए, मरम्मत हुई… और यूं, 1982 में *पैलेस ऑन व्हील्स* चल पड़ी — पहियों पर एक चलता-फिरता महल बनकर। सितंबर 1982 — दिल्ली कैंट स्टेशन से पहली यात्रा शुरू हुई।
कप्तान थे किशनलाल शर्मा। किराया था करीब दस हज़ार रुपये प्रति व्यक्ति — उस समय के हिसाब से बहुत बड़ा अमाउंट। शुरुआत में विदेशी टूरिस्ट और कुछ गुजराती व्यापारी ही इसका हिस्सा बने। शर्मा बताते हैं — “जब ट्रेन जयपुर पहुंचती थी, तो स्वागत ऐसा होता जैसे किसी राजा की बारात आई हो। राजस्थानी लोकगीत, आतिथ्य और शाही ठाठ।” इसका रूट था — दिल्ली से जयपुर, फिर रणथंभौर, चित्तौड़गढ़, उदयपुर, जैसलमेर, जोधपुर, भरतपुर और आगरा। छह रातें और सात दिन की ये यात्रा राजस्थान की शाही विरासत का जीवंत दर्शन कराती थी। ट्रेन में बार कोच, डाइनिंग कोच और यहां तक कि एक डिस्को कोच भी होता था। लेकिन तब की एक बड़ी कमी थी — कोच आपस में जुड़े नहीं थे। अगर किसी यात्री को बार तक जाना होता, तो ट्रेन रोकनी पड़ती थी। और हां, तब एसी कोच भी नहीं थे!
जब पहली बार ट्रेन को मॉडिफाई किया गया, तो विदेशी टूरिस्ट थोड़े निराश हुए। उन्होंने कहा — “लक्ज़री तो हमारे देश में भी है, हम तो यहां राजा-महाराजाओं की असली फीलिंग के लिए आते हैं।” यही वजह थी कि *पैलेस ऑन व्हील्स* ने अपने पुराने राजसी लुक को कभी पूरी तरह छोड़ा नहीं। समय के साथ ट्रेन में कई बदलाव हुए। 2024 में इसे फिर से नया रूप मिला — अब इसमें आधुनिक एसी, वाई-फाई, स्पा, सोलर पैनल्स और इको-फ्रेंडली फीचर्स जोड़े गए हैं। “महाराजा” और “महारानी” रेस्तरां को और भव्य बनाया गया है, लेकिन उसका शाही आकर्षण — वही पुराना है। और ये मेहनत रंग लाई — 2024 में *कॉन्डे नॉस्ट ट्रैवलर रीडर्स चॉइस अवॉर्ड* में पैलेस ऑन व्हील्स को दुनिया की *नंबर वन लग्जरी ट्रेन* घोषित किया गया।
आज हाई सीजन में इसका किराया $6,800 से लेकर $24,500 डॉलर प्रति व्यक्ति तक पहुंच गया है, लेकिन फिर भी, इसका आकर्षण कम नहीं हुआ। विदेशी टूरिस्ट इसे कहते हैं — **“A Royal Journey with Modern Comfort.”** पैलेस ऑन व्हील्स सिर्फ एक ट्रेन नहीं — ये राजस्थान की उस रॉयल स्पिरिट का प्रतीक है, जो बीते युग की शान को आज की दुनिया से जोड़ती है। रेत, रंग और रॉयल्टी का ये सफर आज भी उतना ही मनमोहक है जितना 43 साल पहले था। “राजस्थान की शाही धरती पर जब ये ट्रेन गुजरती है, तो लगता है जैसे इतिहास फिर से पटरियों पर उतर आया हो।”