जयपुर। Sheetla Mata Mandir Mela 1 अप्रैल से जयपुर की चाकसू तहसील में लग रहा है। शीतला माता मेले में हजारों लोगों की भी उमड़ती है। राजस्थान की राजधानी जयपुर की दक्षिण दिशा में करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर शीतला माता का मंदिर स्थित है। शीतला माता का यह मंदिर चाकसू कस्बे में एक पहाड़ी पर स्थित है जो दूर से ही नजर आ जाता है। इस मंदिर में सालभर भक्त दर्शन के लिए आते हैं। परंतु चैत्र माह में शीतला अष्टमी यानि बास्योड़ा के दिन यहां 2 दिवसीय लक्खी मेला भरता है। चाकसू में स्थित इस स्थान को शील की डूंगरी भी कहा जाता है। चाकसू में पहाड़ी पर स्थित शीतला माता मंदिर में इस साल 31 मार्च व 1 अप्रेल को लक्खी मेला भरता है।
- शीतला माता मंदिर मेले में सभी पर्याप्त सुविधाए (Sheetla Mata Temple Facilities)
- शीतला माता को ठंडे व्यंजनों का लगता है भोग (Sheetla Mata Bhog)
- कब है शीतला अष्टमी या बसौड़ा 2024 (Sheetla Mata basyoda)
- शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त (Sheetla Mata Puja Muhurat)
- शीतला सप्तमी तिथि (Sheetla Saptmi Tithi)
- शीतला अष्टमी पूजा विधि (Sheetla Mata Puja Vidhi)
- शीतला माता की कहानी (Sheetla Mata Ki Kahani)
- शीतला माता की आरती (Sheetla Mata Ki Aarti)
शीतला माता मंदिर मेले में सभी पर्याप्त सुविधाए (Sheetla Mata Temple Facilities)
चाकसू कस्बे में स्थित शीतला माता मंदिर श्री ट्रस्ट के महामंत्री लक्ष्मण प्रजापति के मुतातिबक इस मेले में मन्दिर ट्रस्ट की तरफ से सफाई व्यवस्था, पानी-शौचालय की व्यवस्था, सीसीटीवी की व्यवस्था, मंदिर परिसर में रंग रोगन इत्यादि आवश्यक व्यवस्थाओं पूरा कर लिया गया है। रांधा पुआ और रात्रि को जागरण के साथ मेले का शुभारंभ किया जा रहा है 1 अप्रेल तक चलेगा। मेले में पधारने वाले दर्शनार्थियों को किसी प्रकार की असुविधा ना हो, इसके लिए मन्दिर ट्रस्ट व्यवस्थाओं में लगा हुआ है।
शीतला माता को ठंडे व्यंजनों का लगता है भोग (Sheetla Mata Bhog)
आपको बता दें कि शीतला माता मंदिर का पक्का निर्माण आज से लगभग 111 साल पूर्व में जयपुर के महाराजा सवाई माधोसिंह ने कराया था। यह मंदिर जयपुर जिले के चाकसू कस्बा के पास शील की डूंगरी पहाड़ी पर स्थित है। चाकसू में शीतला अष्टमी के दिन भारी मेला भरता है जिस दिन ठंडे पकवानों का भोग लगाया जाता है। यहां पर आज भी वर्षों से चली आ रही परंपरा के मुताबिक प्रजापत समाज के लोग ही पूजा करते हैं।
कब है शीतला अष्टमी या बसौड़ा 2024 (Sheetla Mata basyoda)
हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 1 अप्रैल दिन को रात 09 बजकर 09 मिनट पर हो रही है। इस तिथि का समापन 2 अप्रैल को रात 08 बजकर 08 मिनट पर होगा। उदया तिथि को देखते हुए बसौड़ा यानी शीतला अष्टमी का व्रत 2 अप्रैल को है।
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शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त (Sheetla Mata Puja Muhurat)
2 अप्रैल को शीतला अष्टमी यानी बसौड़ा के दिन सुबह 06 बजकर 10 मिनट से शाम 06 बजकर 40 मिनट के बीच कभी भी शीतला माता की पूजा कर सकते हैं।
शीतला सप्तमी तिथि (Sheetla Saptmi Tithi)
बसौड़ा यानी शीतला अष्टमी से 1 दिन पहले शीतला सप्तमी मनाई जाती है जो कि माता शीतला को समर्पित है। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि 31 मार्च को रात 9 बजकर 30 मिनट से 1 अप्रैल को रात 9 बजकर 9 मिनट तक है। ऐसे में 1 अप्रैल को शीतला सप्तमी और 2 अप्रैल को बसौड़ा मनाई जा रही है।
शीतला अष्टमी पूजा विधि (Sheetla Mata Puja Vidhi)
— शीतला अष्टमी के दिन सुबह स्नान के साफ वस्त्र धारण करें।
— शीतला माता पूजा के दौरान हाथ में फूल, अक्षत, जल और दक्षिणा लेकर व्रत का संकल्प लें।
— माता को रोली, फूल, वस्त्र, धूप, दीप, दक्षिणा और बासा भोग अर्पित करें।
— शीतला माता को दही, रबड़ी, चावल आदि चीजों का भी भोग लगाया जाता है।
— शीतला माता पूजा के समय शीतला स्त्रोत का पाठ करें और पूजा के बाद आरती जरूर करें।
— शीतला माता की पूजा करने के बाद माता का भोग खाकर व्रत खोलें।
शीतला माता की कहानी (Sheetla Mata Ki Kahani)
एक पौराणिक कथा के अनसुसार, एक दिन बूढ़ी औरत और उसकी दो बहुओं ने शीतला माता का व्रत रखा। मान्यता के मुताबिक अष्टमी के दिन बासी चावल माता शीतला को चढ़ाए व खाए जाते हैं। लेकिन दोनों बहुओं ने सुबह ताजा खाना बना लिया। क्योंकि हाल ही में दोनों की संताने हुई थीं, इस वजह से दोनों को डर था कि बासी खाना उन्हें नुकसान ना पहुंचाए। सास को ताजे खाने के बारे में पता चला तो उसने नाराजगी जाहिर की। कुछ समय बाद पता चला कि दोनों बहुओं की संतानों की अचानक मृत्यु हो गई है। इस बात को जान सास ने दोनों बहुओं को घर से बाहर निकाल दिया।
शवों को लेकर दोनों बहुएं घर से निकल गईं। बीच रास्ते वो विश्राम के लिए रूकीं। वहां उन दोनों को दो बहनें ओरी और शीतला मिली। दोनों ही अपने सिर में जूंओं से परेशान थी। उन बहुओं को दोनों बहनों को ऐसे देख दया आई और वो दोनों के सिर को साफ करने लगीं। कुछ देर बाद दोनों बहनों को आराम मिला। शीतला और ओरी ने बहुओं को आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम्हारी गोद हरी हो जाए।
ये बात सुन दोनों बुरी तरह रोने लगीं और उन्होंने महिला को अपने बच्चों के शव दिखाए। ये सब देख शीतला ने दोनों से कहा कि उन्हें उनके कर्मों का फल मिला है। ये बात सुन वो समझ गईं कि शीतला अष्टमी के दिन ताजा खाना बनाने के कारण ऐसा हुआ है।
ये सब जान दोनों ने माता शीतला से माफी मांगी और आगे से ऐसा ना करने को कहा। इसके बाद माता ने दोनों बच्चों को फिर से जीवित कर दिया। इस दिन के बाद से पूरे गांव में शीतला माता का व्रत धूमधाम से मनाए जाने लगा।
शीतला माता की आरती (Sheetla Mata Ki Aarti)
जय शीतला माता,
मैया जय शीतला माता ।
आदि ज्योति महारानी,
सब फल की दाता ॥
ॐ जय शीतला माता..॥
रतन सिंहासन शोभित,
श्वेत छत्र भाता ।
ऋद्धि-सिद्धि चँवर ढुलावें,
जगमग छवि छाता ॥
ॐ जय शीतला माता,
मैया जय शीतला माता ।
विष्णु सेवत ठाढ़े,
सेवें शिव धाता ।
वेद पुराण वरणत,
पार नहीं पाता ॥
ॐ जय शीतला माता,
मैया जय शीतला माता ।
इन्द्र मृदङ्ग बजावत,
चन्द्र वीणा हाथा ।
सूरज ताल बजावै,
नारद मुनि गाता ॥
ॐ जय शीतला माता,
मैया जय शीतला माता ।
घण्टा शङ्ख शहनाई,
बाजै मन भाता ।
करै भक्तजन आरती,
लखि लखि हर्षाता ॥
ॐ जय शीतला माता,
मैया जय शीतला माता ।
ब्रह्म रूप वरदानी,
तुही तीन काल ज्ञाता ।
भक्तन को सुख देती,
मातु पिता भ्राता ॥
ॐ जय शीतला माता,
मैया जय शीतला माता ।
जो जन ध्यान लगावे,
प्रेम शक्ति पाता ।
सकल मनोरथ पावे,
भवनिधि तर जाता ॥
ॐ जय शीतला माता,
मैया जय शीतला माता ।
रोगों से जो पीड़ित कोई,
शरण तेरी आता ।
कोढ़ी पावे निर्मल काया,
अन्ध नेत्र पाता ॥
ॐ जय शीतला माता,
मैया जय शीतला माता ।
बांझ पुत्र को पावे,
दारिद्र कट जाता ।
ताको भजै जो नाहीं,
सिर धुनि पछताता ॥
ॐ जय शीतला माता,
मैया जय शीतला माता ।
शीतल करती जननी,
तू ही है जग त्राता ।
उत्पत्ति व्याधि बिनाशन,
तू सब की घाता ॥
ॐ जय शीतला माता,
मैया जय शीतला माता ।
दास विचित्र कर जोड़े,
सुन मेरी माता ।
भक्ति आपनी दीजै,
और न कुछ भाता ॥
जय शीतला माता,
मैया जय शीतला माता ।
आदि ज्योति महारानी,
सब फल की दाता ॥
ॐ जय शीतला माता..॥