- हनुमान बेनीवाल की लोकप्रियता की कायल हैं दूसरी पार्टियां
- हनुमान बेनीवाल किसान और राजनेता के साथ वकील भी हैं
- दमदार फिल्म स्टोरी से कम नहीं सफर
- छात्र राजनीति से की शुरूआत
- जनता के बीच जबरदस्त लोकप्रियता
- केंद्र सरकार को किया बिल वापस लेने पर मजबूर
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जयपुर। राजस्थान में हनुमान बेनीवाल एक ऐसा नाम है जिनकी जनता के बीच पकड़ की दिल्ली में बैठी मजबूत मोदी सरकार भी कायल है। राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक हनुमान बेनीवाल की एक हुंकार पर हांपती नजर आती है। हालांकि, अधिकतर लोग हनुमान बेनीवाल को एक किसान और राजनेता ही मानते हैं। लेकिन इससे हटकर हनुमान कुछ और भी हैं जिसके दम पर सरकार के हर कानून का ज्ञान रखते हैं और उस पर बनी बेबाक राय देते हैं। हनुमान ये काम उनकी पढ़ाई की बदौलत करते हैं। जी हां, हनुमान बेनीवाल राजनीति के साथ ही कानून में भी अच्छी पकड़ रखते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि हनुमान एक वकील भी हैं। पढ़ाई के मामले में उनके पास एलएलबी की डिग्री है।
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हनुमान बेनीवाल किसान और राजनेता के साथ वकील भी हैं
हनुमान बेनीवाल किसान, राजनेता और वकील भी हैं और वर्तमान में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक व नागौर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद हैं। इससे पहले वो नागौर की खींवसर विधानसभा से 3 बार विधायक रह चुके हैं। उन्होंने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी की स्थापना 29 अक्टूबर 2018 वीर तेजा रोड़ जयपुर में की थी। इसके बाद से हनुमान का कारवां आगे बढ़ता और जनता के बीच एक जबरदस्त नेता के रूप में उभर कर सामने आए है जिसका लोहा भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों को भी मानना पड़ा।
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दमदार फिल्म स्टोरी से कम नहीं सफर
हनुमान बेनीवाल के निजी सफर की बात की जाए तो वो किसी दमदार फिल्म स्टोरी से कम नहीं। उनका जन्म 2 मार्च 1972 को राजस्थान में नागौर जिले के बरनगांव गांव में राम देव और मोहिनी देवी के घर हुआ था। हनुमान ने 1993 में राजस्थान विश्वविद्यालय से कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने 1998 में एल.एल.बी. की डिग्री हासिल। बाद 9 दिसंबर 2009 को कनिका बेनीवाल से शादी की, जिनसे उनका एक बेटा और एक बेटी है।
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छात्र राजनीति से की शुरूआत
हनुमान बेनीवाल ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत छात्र राजनीति से की। वो भारतीय जनता पार्टी की तरफ से 2008 में खींवसर से विधायक बने। लेकिन वसुंधरा राजे से मतभेदों के चलते बेनीवाल ने भारतीय जनता पार्टी से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने नागौर, बाड़मेर, बीकानेर, सीकर, जयपुर में पांच किसान हुंकार महा रैलियों का सफलतापूर्वक आयोजन किया और और वो एक बार फिर 2013 मे निर्दलीय विधायक बने। वर्ष 2018 में उन्होंने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली जिससें वो अभी भी लोकसभा सांसद हैं।
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जनता के बीच जबरदस्त लोकप्रियता
हनुमान बेनीवाल की जनता के बीच लोकप्रियता की बात की जाए तो वो बड़े—बड़े दिग्गजों को सोचने पर मजबूर कर देती है। इस किसान और राजनेता ने अपनी ही पार्टी आरएलपी के उम्मीदवार के रूप में तीसरी बार विधानसभा सीट जीती। 2013 में वह एक निर्दलीय उम्मीदवार थे और उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी भाजपा उम्मीदवार को 23,020 मतों से हराया था। 2008 में वो भाजपा के उम्मीदवार थे और उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी बसपा उम्मीदवार को 24,443 मतों से हराया था।
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केंद्र सरकार को किया बिल वापस लेने पर मजबूर
हनुमान बेनीवाल अपनी एलएलबी की डिग्री की वजह से राज्य व केंद्र सरकारों द्वारा बनाए जाने वाले काननों को बहुत ही अच्छे तरीके समझते हैं और फिर उस पर अपना स्टैंड रखते हैं। इसी डिग्री की बदौलत हनुमान 2020 में केंद्र सरकार किसान बिलों के विरोध में शामिल हुए और इसे 'किसान विरोधी' बताते हुए उसें वापस लेने में अपनी अहम भूमिका निभाई।
