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  • श्रीजी महाराज का विशेष श्रंगार किया जाता है
  • रहस्यों का खजाना है कल्‍याण जी मंदिर
  • कल्‍याण जी मंदिर की चमत्कारी कहानी
  • राजा डिग्व का नगर है डिग्गी
  • राजा डिग्व ने किया इंद्र से युद्ध

 

जयपुर। आज 23 अगस्त 2023 से टोंक जिले में स्थित डिग्गी कल्याण मंदिर की 58वीं लक्खी पदयात्रा रवाना हो गई है। इस दौरान डिग्गी कल्याण मेले का आयोजन किया जा रहा है जो 22 से 26 अगस्त तक चलेगा। इस बार श्रावण शुक्ल षष्ठी पर मंगलवार से डिग्गीपुरी के कल्याण धणी का मुख्य लक्खी मेला शुरू हुआ है। इसी के साथ ही इसके लिए देशभर में श्रद्धालु पहुंचना शुरू हो गए हैं। डिग्गी कल्याण यात्रा में कनक दंडवत करते श्रीजी के जयकारों के साथ भक्त रवाना होते हैं। इस दौरान प्रमुख मंदिरों के संत-महंत व राजनेता मुख्य ध्वज का पूजन कर पद यात्रा को रवाना करते हैं।

 

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श्रीजी महाराज का विशेष श्रंगार किया जाता है
इस बार डिग्गी कल्याण मंदिर का मुख्य मेला 22 से 26 अगस्त तक किया जा रहा है। अभी जहां मेले में हजारों लोग दर्शन करने पहुंचे रहे है, वहीं मुख्य मेले में लाखों श्रद्धालु पहुंचेंगे। मुख्य मेले में श्रीजी महाराज का विशेष श्रंगार किया जाएगा।

 

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रहस्यों का खजाना है कल्‍याण जी मंदिर
डिग्गी कल्‍याण जी मंदिर समेत भारत में कई ऐसे मंदिर हैं, जिनकी उत्‍पत्ति और बनावट की शैली रहस्‍यों का खजाना है। यहां हम आपको कल्‍याण जी मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जिसकी स्‍थापना की कथा बेहद रोचक है। यदि आप भी किसी धार्मिक यात्रा का ट्रिप प्‍लान कर रहे हैं तो एक राजस्‍थान के टोंक जिले में स्थित कल्‍याण जी मंदिर जरूर जाएं।

 

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कल्‍याण जी मंदिर की चमत्कारी कहानी
राजस्‍थान के टोंक जिले में स्‍थापित कल्‍याण जी मंदिर के बारे में कथा है कि इसका पुर्ननिर्माण साल 1527 में किया गया था। हालांकि इस मंदिर का निर्माण कब हुआ इस बारे में अभी त‍क कोई साक्ष्‍य नहीं मिला है। जानकारों के अनुसार एकबार इंद्र के दरबार में अप्‍सराओं का नृत्‍य चल रहा था। तभी उनमें से एक अप्‍सरा उर्वशी हंसने लगीं। देवराज इंद्र को क्रोध आ गया और उन्‍होंने उर्वशी को 12 वर्षों तक पृथ्‍वी पर रहने का श्राप दे दिया। वह काफी परेशान हुईं। लेकिन पृथ्‍वी पर सप्‍त ऋषियों के आश्रम में रहकर सभी की सेवा करने लगीं। उनकी सेवा से प्रसन्‍न होकर ऋषियों ने उन्‍हें मुक्ति का मार्ग बताया।

 

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राजा डिग्व का नगर है डिग्गी
उर्वशी अप्‍सारा राजा डिग्‍व के नगर पहुंचीं और यहां पर रात में घोड़ी का रूप धारण करके वह बाग के वृक्षों को खाकर अपनी भूख मिटाती थी। एक दिन राजा ने सोचा कि बाग खत्‍म होता जा रहा है। इसे नष्‍ट करने वाले का जल्‍दी ही पता लगाना होगा। राजा ने बाग की निगरानी की और उर्वशी को पकड़ लिया। उर्वशी के असली रूप को देखकर वह उसपर मोहित हो गए। लेकिन उर्वशी ने कहा कि उन्‍हें देवराज इंद्र से युद्ध करना होगा। अगर वह पराजित हो गए तो उर्वशी उन्‍हीं के साथ रहेगी। वरना उन्‍हें श्राप दे देगी।

 

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राजा डिग्व ने किया इंद्र से युद्ध
बताया जाता है कि राजा डिग्व ने इंद्र से युद्ध किया लेकिन वो परास्‍त हो गए और उर्वशी ने उन्‍हें कुष्‍ठ रोग होने का श्राप दे दिया। इसके बाद राजा भगवान विष्‍णु की शरण में पहुंचे। उन्‍होंने बताया कि राजा को कुछ समय के बाद समुद्र में उनकी मूर्ति मिलेगी, जिससे उनका उद्धार हो जाएगा और हुआ भी ऐसा ही। इसके बाद राजा ने उस मूर्ति की स्‍थापना कर दी। क्‍योंकि उसी मूर्ति से राजा का कल्‍याण हुआ था इसलिए उस मंदिर का नाम 'कल्‍याण जी' हो गया। यहां वैशाख पूर्णिमा, श्रावण एकादशी, अमावस्‍या और जल झूलनी एकादशी पर मेले का आयोजन होता है। यहां हर वर्ष भारत के कोने-कोने से श्रद्धालु पहुंचते हैं और मन्‍नतों की अर्जी लगाते हैं।

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