Top 7 Ganesh Mandir Rajasthan: हिंदू धर्म में भगवान गणेश जी की सर्वप्रथम पूजा की जाती हैं। किसी भी कार्य की शुरुआत में गणेश जी की पूजा का विशेष महत्त्व हैं। यदि दिन बुधवार का हो, तो यह और भी विशेष हो जाता हैं। दरअसल, गणपति बप्पा के नाम से जन-जन के तन-मन में वास करने वाले प्रभु गणेश जी की विशेष पूजा के लिए बुधवार का दिन शास्त्रों-पुराणों में तय हैं। इस दिन राजस्थान के गणेश मंदिरों में भी श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। ऐसे में हम आपको बता रहे हैं, मरुधरा की पावन धरती पर स्तिथ उन 7 गणेश मंदिरों के बारे में, जहां हर व्यक्ति को एक बार तो अवश्य जाना चाहिए।
गढ़ गणेश मंदिर
(Garh Ganesh Mandir)
(Garh Ganesh Mandir)
इस मंदिर में बिना सूंड वाले गणेश जी विराजमान है। यहां गणेशजी का बालरूप विद्यमान है। रियासतकालीन यह मंदिर ‘गढ़ की शैली’ में बना हुआ है, जिस वजह से इसका नाम गढ़ गणेश मंदिर पड़ा। यहां गणेशजी के दो विग्रह हैं, जिनमें पहला विग्रह आंकडे की जड़ का और दूसरा अश्वमेघ यज्ञ की भस्म से बना हुआ है। नाहरगढ़ की पहाड़ी पर महाराजा सवाई जयसिंह ने अश्वमेघ यज्ञ करवा कर गणेश जी के बाल स्वरूप वाली प्रतिमा की विधिवत स्थापना करवाई थी।
मंदिर परिसर में पाषाण के बने दो मूषक स्थापित हैं। कहते हैं, इन मूषकों के कान में इच्छाएं बताने से वे बाल गणेश तक उन्हें पहुंचाते हैं।
मोती डूंगरी मंदिर
(Moti Dungri Mandir)
(Moti Dungri Mandir)
जयपुरवासियों के लिए मोती डूंगरी एक खास मंदिर है। भक्त शहर के कोने कोने से यहां पहुंचते हैं। जयपुरवासियों का मानना है कि, नई गाड़ी खरीदने के तुंरत बाद सबसे पहले इस मंदिर में लाकर पूजा करने से वाहन शुभ फल देता है। मंदिर में स्थापित भगवान की मूर्ति जयपुर के राजा माधोसिंह प्रथम की रानी के पीहर मावली से लाई गई थी, जो करीब पांच सौ साल पुरानी है। मावली के पल्लीवाल सेठ ही मूर्ति को लाये और उन्होंने इस मंदिर को बनवाया।
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नहर के गणेश जी
(Nahar ke Ganesh ji)
(Nahar ke Ganesh ji)
जयपुर में नाहरगढ़ की पहाड़ियों की तलहटी में बने इस मंदिर में विराजमान गणेश जी की प्रतिमा की सूंड दाहिनी तरफ है। मंदिर के महंत पण्डित जय शर्मा बताते हैं कि, मान्यतानुसार यहां सिर्फ उल्टा स्वास्तिक बनाने से ही बिगड़े काम बनने लगते है। हर बुधवार मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं।
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सिद्ध गजानंद मंदिर
(Siddha Gajanand Mandir)
(Siddha Gajanand Mandir)
यह गणेश मंदिर जोधपुर के रातानाडा में स्तिथ हैं। यह 150 साल पुराना बताया जाता है। पहाड़ी पर बने इस मंदिर की भूतल से उंचाई करीब 108 फीट है। लोग बताते है कि, विवाह के दौरान यहां निमंत्रण देने से शुभ कार्य में कोई बाधा नहीं आती। इसलिए जोधपुर के हर घर में शादी से पहले यहां निमंत्रण दिया जाता है और विधि विधान से गणेश जी की प्रतीकात्मक मूर्ति ले जाकर विवाह स्थल पर स्थापित की जाती है। विवाहोपरांत मूर्ति पुन: मंदिर में रख दी जाती है। मंदिर में लोग मौली बांधकर अपनी मन्नत भी मांगते हैं। कहते हैं, जो मांगा जाता है, वो मिलता है। एक पुरानी मान्यता के अनुसार, मंदिर की ऊंचाई पर स्तिथ पत्थरों से लोग यहां आकर छोटे-छोटे घरों की आकृतियां बनाते है। कहते हैं, ऐसा करने से भक्तों के अपने घर की मनोकामना जल्द पूरी होती हैं।
त्रिनेत्र गणेश मंदिर
(Trinetra Ganesh Mandir)
(Trinetra Ganesh Mandir)
राज्य के सवाईमाधोपुर जिले से 10 किलोमीटर दूर रणथंभौर किले में प्रसिद्ध गणेश मंदिर स्थापित है। यहां भगवान गणेश अपनी पत्नियों रिद्धि सिद्धि और पुत्र शुभ लाभ के साथ विराजित हैं। मान्यता है कि, कोई भी शुभ काम करने से पहले चिट्ठी भेजकर भगवान को निमंत्रित किया जाता है, जिससे उनके कार्य निर्विघ्न संपन्न हो सकें। गणेश जी के चरणों में यहां लगातार शादी के कार्ड चढ़ाए जाते हैं। यहां भगवान की मूर्ति में तीन आंखें हैं, जिसकी वजह से इन्हें त्रिनेत्र गजानन के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर 10वीं सदी में रणथंभौर के राजा हमीर ने बनवाया था। मंदिर की मूर्ति स्वयंभू है।
इश्किया गजानन मंदिर
(Ishqiya Gajanan Mandir)
(Ishqiya Gajanan Mandir)
यह मंदिर जोधपुर शहर के परकोटे के भीतर आडा बाजार जूनी मंडी में स्तिथ हैं। युवा पीढ़ी के लोग यहां विराजित अनूठे विनायक को अपना ‘नायक’ मानते है। गुरु गणपति मंदिर की ख्याति समूचे शहर में ‘इश्किया गजानन’ जी मंदिर के रूप में लोकप्रिय है। प्रेम में सफलता के लिए युवा जोड़े यहां दर्शन करने आते हैं। कहा जाता है कि, महाराजा मानसिंह के समय गुरु गणपति की मूर्ति गुरों का तालाब की खुदाई के दौरान मिली थी। बाद में गुरों का तालाब से एक तांगे में मूर्ति को विराजित कर जूनी मंडी स्थित निवास के समक्ष चबूतरे पर लाकर प्रतिष्ठित किया गया।
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बोहरा गणेश मंदिर
(Bohra Ganesh Mandir)
(Bohra Ganesh Mandir)
राजस्थान के उदयपुर में स्तिथ यह गणेश मंदिर करीब 350 साल पुराना है। सात से आठ दशक पहले तक पैसे की जरूरत होने पर लोग कागज के टुकड़े पर आवश्यकता के बारे में लिखकर मूर्ति के पास छोड़ देते थे, बाद में ये पैसा ब्याज सहित भगवान को लौटाते थे।