जयपुर। आज के समय में पैरेंट्स की एक बड़ी चिंता अपने बच्चों की पढ़ाई होती है। इसके लिए वो बच्चों को अच्छे से अच्छे स्कूल में एडमिशन दिलाते हैं। कईयों को तो अपना पेट काटकर अपने बच्चों का उज्ज्वल भविष्य बनाने की कोशिश करनी होती हैं। हालांकि, प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस के कारण कई बार पैरेंट्स को अपने मन को मसोस कर रह जाना पड़ता है। लेकिन एक स्कूल ऐसा भी है जहां फीस नहीं ली जाती है, बल्कि उल्टा बच्चों को स्टाइपेंड दिया जाता है। इस स्कूल की जरूरतमंदों की जिंदगी बदलने के मकसद से इसकी शुरुआत की गई है। इस स्कूल को जोहो कॉरपोरेशन के सीईओ और संस्थापक श्रीधर वेम्बु चलाते हैं। इसके लिए उन्हें 2021 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। वो भारत के 55वें सबसे अमीर शख्स हैं।
रूरल स्कूल स्टार्टअप का ऐलान
आपको बता दें कि 2020 में वेम्बु श्रीधर ने रूरल स्कूल स्टार्टअप का ऐलान किया। इसका मकसद फ्री प्राइमरी एजुकेशन देना है। इसके पहले 2005 में ही श्रीधर वेम्बु ने जोहो स्कूल की नींव डाल दी थी। 2004 में जोहो यूनिवर्सिटी शुरू करने के एक साल बाद इसकी शुरुआत हुई थी। जोहो स्कूल में कोई फीस नहीं ली जाती है। बजाय इसके छात्रों को अलग-अलग तरह की स्किल्स सिखाई जाती हैं। स्टूडेंट्स को दो साल के कोर्स के लिए 10,000 रुपये स्टाइपेंड दिया जाता है। जोहो कॉरपोरेशन में काम करने वाले हजारों कर्मचारियों में बड़ी संख्या में इस स्कूल के होते हैं।
800 से ज्यादा बच्चे
जोहो स्कूल 6 बच्चों और 2 टीचरों के साथ शुरू हुआ था। अब इन स्टूडेंट की संख्या बढ़कर 800 से ज्यादा हो चुकी है। जोहो स्कूल के प्रेसीडेंट राजेंद्रन दंडपाणी का बेटा भी इसी स्कूल में पढ़ा। फिर उसी कंपनी में कर्मचारी बन गया। राजेंद्रन बताते हैं कि जोहो में 90 फीसदी स्टूडेंट तमिलनाडु के होते हैं। जोहो इंस्टीट्यूट तेनकासी में वहीं है जहां जोहो के दफ्तर बने हैं। इसके कारण स्टूडेंट ऑफिस के माहौल से जल्द ही एक्सपोज्ड हो जाते हैं। जोहो के स्टूडेंट 21 साल की छोटी उम्र से काम पर लग जाते हैं। जोहो स्कूल में पढ़ाई ग्रेड, नंबरों या स्कोर पर नहीं, बल्कि योग्यता पर निर्भर करती है। यहीं से टैलेंट खोजा जाता है।